बादल पर दोहे
मेघ या बादल हमेशा से
मानव-मन को कल्पनाओं की उड़ान देते रहे हैं और काव्य में उनके विविध रूपों और भूमिकाओं का वर्णन होता रहा है। इस चयन में शामिल है—बादल विषयक कविताओं का संकलन।
कौन सुने, कासौं कहाँ, सुरति बिसारी नाह।
बदा-बदी ज्यों लेत हैं, ए बदरा बदराह॥
मैं अपनी विपत्ति किसके समक्ष निवेदित करूँ और ऐसा कौन है जो उसे सुन सकेगा? कष्टप्रद अनुभूतियों की चर्चा अपने किसी अंतरंग हितैषी से ही की जा सकती है। मैं यदि किसी ऐसे-वैसे के सामने अपनी कष्टप्रद स्थिति का वर्णन करूँ तो कोई मेरी ओर ध्यान नहीं देगा। इस संसार में सभी अपनी-अपनी बात सुनते हैं। यह मेरा दुर्भाग्य है कि मेरे स्वामी ने भी मुझे विस्मृत कर दिया है। उनकी अनुपस्थिति में ये दुष्ट बादल स्पष्ट रूप से मुझे अधिक पीड़ित करने लगे हैं।
चल न सकै निज ठौर तैं, जे तन द्रुम भिराम।
तहाँ आइ रस बरसिबौ, लाजिम तुहि घनस्याम॥
रसनिधि बादल को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे बादल! जो बेचारे सुंदर वृक्ष अपने स्थान से चल नहीं सकते, उन वृक्षों के पास आकर रस की वर्षा करना तुम्हारा ही काम है।
जगजीवन जन तापहर, चपला पियु बपु स्याम।
वैष्णोंवल्लभ नीलग्रिव, हरि माधो जस नाम॥
(१) हे संसार के जीवन (जल) रूपी मेघ, तू लोगों का ताप हरनेवाला है। तू चपला (बिजली) का स्वामी है और काले शरीरवाला है। तू वनस्पतियों और मयूरों का प्रिय है। हरि (इंद्र) और माधव (कृष्ण) आदि नामों से भी तुझे पुकारा जाता है।
उमड़ रहे घन सघन अति, रही रैन अँधियार।
स्याम रंग सारी दुरी, चली पीउ पैं नार॥
सबै काम सुधरैं जबै, करैं कृपा श्रीराम।
जैसे कृषि किसान की, उपजावे घन स्याम॥
कहिं घहरत बरसत कहीं, कहीं ठहरत घन जाय।
ये करणी इन कीह क्यों, कह जमाल समुझाय॥
सामान्य अर्थ : ये बादल (घन) कहीं पर गरजते हैं, तो अन्य स्थान पर जाकर वर्षा करते हैं और फिर कहीं पर जाकर ठहरते हैं। इन बादलों का ऐसा व्यवहार क्यों है?
गूढ़ार्थ : इन बादलों का नाम भी घन है, इसलिए ये घनश्याम का अनुसरण करते हैं, जो कि सदा मधुकर की भाँति स्थान-स्थान पर भटकते रहते हैं।