सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' के उद्धरण



जितने भी धर्म प्रचारित किए गए, सब अपनी व्यापकता तथा सहृदयता के बल पर फैले।
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नेता? नेता कौन है? मनुष्य? एक मनुष्य सब विषयों की पूर्णता पा सकता है? 'न। इसीलिए नेता मनुष्य नहीं। सभी विषयों की संकलित ज्ञान-राशि का नाम नेता है।

साथ निवास करने वाले दुष्टों में जल तथा कमल के समान मित्रता का अभाव ही रहता है। सज्जनों के दूर रहने पर भी कुमुद और चंद्रमा के समान प्रेम होता है।

पेट जितना भी भरा रहे, आशा कभी नहीं भरती। वह जीवों को कोई-न-कोई अप्राप्य, कुछ नहीं तो केवल रंगों की माया का इंद्रधनुष प्राप्त करने के मायावी दलदल में फँसा ही देती है।
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धन घर रह जाता है तथा बांधव श्मशान में छूट जाते हैं। आत्मा के प्रयाण काल में पाप तथा पुण्य ही जीवात्मा के साथ जाते हैं।
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पापों का फल तत्काल समझ में नहीं आता। उसका ज़हर अवस्था की तरह ठीक अपने समय पर चढ़ता है।
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निःसीम काल का सौ वर्ष कितना सा अंश है? मनुष्य की वह परम आयु है अतः वह कैसे सो सकता है?
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घी से सिक्त होने पर थोड़ी सी भी अग्नि धधक उठती है। एक बीज हज़ारों बीजों में परिणत हो जाता है। उत्थान और पतन बहुत अधिक हो सकता है। अतः मनुष्य को अपने थोड़े से धन की भी अवमानना नहीं करना चाहिए।
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पेट में जब तक दीनता के पिल्ले कूँ-कूँ करते रहेंगे, मनुष्य को अपनी पहचान अपने आप न होगी, वह किसी ऊँची बात का अर्थ नहीं समझ सकता।
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