जॉय हार्जो के उद्धरण
 
                शायद यह संसार रसोई की मेज़ पर ही समाप्त होगा, जबकि हम हँसते और रोते होंगे, और निश्चिन्तता से अपना अंतिम मीठा निवाला खाते होंगें।
अनुवाद : शुभा द्विवेदी
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                युद्ध इसी मेज़ पर शुरू हुए हैं और समाप्त भी । यह आतंक की परछाईं से छिपने की सटीक जगह है। एक भयावह जीत का जश्न मनाने की जगह भी।
अनुवाद : शुभा द्विवेदी
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                हमने अपनी संतानों को इसी मेज़ पर जन्म दिया है और यहीं अपने माता-पिता को विदा करने से पूर्व तैयार भी किया है।
अनुवाद : शुभा द्विवेदी
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                हमारी महत्वाकांक्षाएँ हमारे साथ यहाँ कॉफ़ी पीती हैं और अपनी बाहें हमारे बच्चों के गले में डाल देती हैं । वे हमारे गिरते-पड़ते बेचारे स्वरूपों पर हमारे साथ हँसती हैं और हम एक बार पुनः स्वयं को मेज़ पर स्थापित पाते हैं।
अनुवाद : शुभा द्विवेदी
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                धरती की तमाम नेमतें लाई जाती हैं और पकाकर मेज़ पर सजा दी जाती हैं। ऐसा सृष्टि के उद्गम के साथ होता आया है और आगे भी ऐसा ही चलेगा।
अनुवाद : शुभा द्विवेदी
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                मेज़ पर ही हम गपशप करते हैं, फिर जगाते हैं दुश्मनों और प्रेमियों की प्रेतात्माओं को।
अनुवाद : शुभा द्विवेदी
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                दुनिया खाने की मेज़ पर ही शुरू होती है। चाहे जो भी हो, हमें जीने के लिए खाना ही होता है।
अनुवाद : शुभा द्विवेदी
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                इस मेज़ के इर्द गिर्द हम गाते रहे हैं उत्सव में और शोक में भी। यहीं हम कष्ट में प्रार्थनारत रहे हैं और पश्चाताप में भी। यहाँ हम कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।
अनुवाद : शुभा द्विवेदी
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                यह मेज़ बारिश के दिनों में घर रही है और धूप में एक छाता।
अनुवाद : शुभा द्विवेदी
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                                    संबंधित विषय : घर
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