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दादा धर्माधिकारी

1899 - 1985 | मध्य प्रदेश

दादा धर्माधिकारी के उद्धरण

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जन्तंत्र में इस बात की आवश्यकता है कि जो क्रांति हो, वह केवल जनता के लिए हो, 'जनता की क्रांति', 'जनता के द्वारा' हो। आज क्रांति भी जनतांत्रिक होनी चाहिए, अन्यथा दुनिया में जनतंत्र की कुशल नहीं है। क्रांति की प्रक्रिया ही जनतांत्रिक होनी चाहिए।

क्रांति में मूल्य का परिवर्तन होगा। सबसे पहले हमें अपने जीवन में परिवर्तन करना होगा।

सबको खाना, कपड़ा, मकान, मिल जाना क्रांति नहीं है। जितनी ज़रूरत हो, उतना खाना मिले, कपड़े की ज़रूरतें पूरी हो जाएँ, हर एक को रहने के लिए अच्छा मकान मिल जाए—यह मनुष्य को सुखी जानवर बना सकता है, लेकिन स्वतंत्र मानव नहीं बना सकता। इसलिए यह क्रांति नहीं है।

अहिंसक प्रक्रिया में क्रांति का साध्य भी मनुष्य है और क्रांति का साधन भी मनुष्य है।

हमारा व्यक्तित्व जैसा होगा, वैसा ही दुनिया का नक्शा हम बनाएँगे। इसे 'चारित्र्य' कहते हैं।

मनुष्य को जिन बातों की बुनियाद पर समाज में इज़्ज़त मिलती है, उन बुनियादों का नाम मूल्य है। प्राचीन परिभाषा में इन्हें 'सामाजिक सत्ता' या 'सामाजिक प्रतिष्ठा' कहते थे। इस बुनियाद को एक सिरे से दूसरे सिरे तक पूरी तरह बदल देने का नाम 'क्रांति' है। मूल्यों के प्रधान लक्षण हैं—प्रामणिकता, सच्चाई, ईमानदारी।

जीविका की पद्धति में और प्रतिष्ठा में जब आमूलाग्र परिवर्तन हो तब वह क्रांति कहलाती है।

यंत्रीकरण के साथ समाज यंत्र निष्ठ हो जाता है। यंत्र पर इतना भरोसा हो कि वह मनुष्य की जगह ले ले। यंत्र में इतना विश्वास हो कि मनुष्य के ऊपर भरोसा ही रहे। आर्थिक संयोजन में यंत्र हो, यह अलग बात है, लेकिन मनुष्य की जगह यंत्र ही जाए, इसकी सावधानी रखनी चाहिए।

दुनिया में जितने धर्म हैं, जिनके कारण विरोध होता है, सरूप नहीं होता है, वे सबके सब 'अधर्म' हैं।

हमारा परम मूल्य जीवन है। जीवन को सर्वत्र संपन्न बनाना है। सबके जीवन को संपन्न बनाना है।

स्त्री अनाक्रमणीय कब होती है? जब वह माता बन जाती है। मनुष्य अनाक्रमणीय कब बनता है? जब वह विभूति बन जाता है।

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हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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