भक्तिकाल

लगभग 1318 ई. से 1643 ई. के दरमियान भक्ति-साहित्य की दो धाराएँ विकसित हुईं—एक सगुण धारा, जिसमें रामभक्ति और कृष्णभक्ति की सरस गाथाएँ हैं; दूसरी निर्गुण धारा, जिसमें ज्ञानमार्गी संतों और प्रेममार्गी सूफ़ी-संतों की महान परंपरा है। भारत के सांस्कृतिक और साहित्यिक इतिहास में भक्तिकाल को ‘लोकजागरण’ का स्वर्णयुग माना गया है।

शृंगार काव्य

सूफ़ी संत। शाह निज़ामुद्दीन चिश्ती की शिष्य परंपरा में 'हाजी बाबा' के शिष्य। भाषा में अवधी के साथ अरबी-फ़ारसी की शब्दावली का प्रयोग।

चिश्ती संप्रदाय के संत शेख़ बुरहान के शिष्य। जौनपुर के बादशाह हुसैनशाह के आश्रित। प्रेम में त्याग और कष्टों के सुंदर वर्णन के लिए उल्लेखनीय।

हिंदी-काव्यशास्त्र के पहले रचनाकार के रूप में समादृत। सरस, भावपूर्ण और परिमार्जित भाषा के लिए स्मरणीय।

साहित्य की प्रेमाख्यान परंपरा के कवि। लोक कंठ में व्याप्त 'ढोला-मारू रा दूहा' प्रसिद्धि का आधार ग्रंथ।

भक्तिकाल के अलक्षित कवि।

भक्तिकालीन रीति कवि। 'शृंगार मंजरी' काव्य परंपरा के अलक्षित आदिकवि।

जैन कवि। काव्य में विरह के करुण आवेगों का सरस वर्णन।

भक्तिकाल से संबद्ध कवि-संगीतकार। स्वामी हरीदास के शिष्य। सम्राट अकबर के नौ रत्नों में से एक।

सूफ़ी कवि। राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग।

ओरछानरेश इंद्रजीत सिंह की कृपापात्र नर्तकी और विदुषी। प्रचलित है कि आचार्य केशवदास ने 'कविप्रिया' नामक ग्रंथ प्रवीण को कविशिक्षा देने हेतु रचा था।

सूफ़ी काव्य परंपरा के कवि। संयोग और वियोग की विविध दशाओं के वर्णन में सिद्धहस्त। 'रसरतन' ग्रंथ कीर्ति का आधार।

समय : अज्ञात। कोमल कल्पना और स्निग्ध सहृदयता के सूफ़ी कवि।

हिंदी में प्रेमाख्यान परंपरा का सूत्रपात करने वाले सूफ़ी कवि।

1467 -1542

भक्ति-काव्य की निर्गुण धारा के अंतर्गत समाहित सूफ़ी काव्य के अत्यंत महत्वपूर्ण कवि। ‘पद्मावत’ कीर्ति का आधार-ग्रंथ।

1556 -1627 दिल्ली

भक्तिकाल के प्रमुख कवि। व्यावहारिक और सरल ब्रजभाषा के प्रयोग के ज़रिए काव्य में भक्ति, नीति, प्रेम और शृंगार के संगम के लिए स्मरणीय।

1483 -1563

ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कृष्णभक्त कवि। पुष्टिमार्गीय अष्टछाप कवि। वात्सल्य रस के सम्राट।

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