भक्तिकाल

लगभग 1318 ई. से 1643 ई. के दरमियान भक्ति-साहित्य की दो धाराएँ विकसित हुईं—एक सगुण धारा, जिसमें रामभक्ति और कृष्णभक्ति की सरस गाथाएँ हैं; दूसरी निर्गुण धारा, जिसमें ज्ञानमार्गी संतों और प्रेममार्गी सूफ़ी-संतों की महान परंपरा है। भारत के सांस्कृतिक और साहित्यिक इतिहास में भक्तिकाल को ‘लोकजागरण’ का स्वर्णयुग माना गया है।

बावरी संप्रदाय

भक्तिकालीन निर्गुण मत की स्त्री संत। 'बावरी संप्रदाय' की संस्थापिका।

बावरी साहिबा के प्रधान शिष्य और प्रसिद्ध संत यारी साहब के गुरु। जन्म-मृत्यु तिथियाँ अनिश्चित।

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