Font by Mehr Nastaliq Web
Rahim's Photo'

रहीम

1556 - 1627 | दिल्ली

भक्तिकाल के प्रमुख कवि। व्यावहारिक और सरल ब्रजभाषा के प्रयोग के ज़रिए काव्य में भक्ति, नीति, प्रेम और शृंगार के संगम के लिए स्मरणीय।

भक्तिकाल के प्रमुख कवि। व्यावहारिक और सरल ब्रजभाषा के प्रयोग के ज़रिए काव्य में भक्ति, नीति, प्रेम और शृंगार के संगम के लिए स्मरणीय।

रहीम की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 62

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।

टूटे से फिर मिले, मिले गाँठ परिजाय॥

रहीम कहते हैं कि प्रेम का रिश्ता बहुत नाज़ुक होता है। इसे झटका देकर तोड़ना यानी ख़त्म करना उचित नहीं होता। यदि यह प्रेम का धागा (बंधन) एक बार टूट जाता है तो फिर इसे जोड़ना कठिन होता है और यदि जुड़ भी जाए तो टूटे हुए धागों (संबंधों) के बीच में गाँठ पड़ जाती है।

रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।

पानी गए ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥

रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयुक्त किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में 'विनम्रता' से है। मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे के बिना संसार का अस्तित्व नहीं हो सकता, मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है उसी तरह विनम्रता के बिना व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं हो सकता। मनुष्य को अपने व्यवहार में हमेशा विनम्रता रखनी चाहिए।

कहि रहीम इक दीप तें, प्रगट सबै दुति होय।

तन सनेह कैसे दुरै, दृग दीपक जरु दोय॥

रहीम कहते हैं कि जब एक ही दीपक के प्रकाश से घर में रखी सारी वस्तुएँ स्पष्ट दीखने लगती हैं, तो फिर नेत्र रूपी दो-दो दीपकों के होते तन-मन में बसे स्नेह-भाव को कोई कैसे भीतर छिपाकर रख सकता है! अर्थात मन में छिपे प्रेम-भाव को नेत्रों के द्वारा व्यक्त किया जाता है और नेत्रों से ही उसकी अभिव्यक्ति हो जाती है।

कहि रहीम संपत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीत।

बिपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत॥

  • शेयर

नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।

ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू देत॥

  • शेयर

पद 2

 

सवैया 4

 

कवित्त 3

 

सोरठा 1

 

बरवै 116

पुस्तकें 1

 

"दिल्ली" से संबंधित अन्य कवि

Recitation