क्योंकि कलाएँ लोकतांत्रिक हैं
रॉबर्ट डी नीरो
20 मई 2025

चंद रोज़ पहले Cannes Film Festival में रॉबर्ट डी नीरो को लाइफ़टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस पुरस्कार को स्वीकार करते हुए उन्होंने चार मिनट पच्चीस सेकेंड का एक वक्तव्य दिया। यहाँ प्रस्तुत है अँग्रेज़ी में दिए गए इस वक्तव्य का अनमोल कृत हिंदी अनुवाद :
लियो (डी कैप्रियो), शुक्रिया, इस ख़ास अवसर पर, यहाँ, मेरे साथ होने के लिए। Cannes Film Festival को इस पाम डी’ओर के लिए बहुत शुक्रिया। पटल के लिए कहानियाँ कहने की कला से जो प्रेम करते हैं, उनके लिए, एक ऐसा समुदाय—या आप चाहें तो इसे घर कह लें—बनाने के लिए Cannes Film Festival को हज़ारों-हज़ार शुक्रिया!
मैं पहली बार यहाँ, मार्टिन स्कॉर्सेज़ी की ‘मीन स्ट्रीट्स’ के साथ साल 1973 में आया था, और फिर, पचास वर्षों के बाद, मार्टिन की ‘किलर्स ऑफ़ द फ़्लॉवर मून’ के साथ। इस दरमियान, मैं यहाँ बर्तोलुची, रोलैंड जॉफ़ी, सर्जियो लियोनी, जॉन मैक'नॉटन, अर्विन विंकलर, बैरी लेविंसन के साथ आ चुका हूँ; और अब दुबारा मार्टिन के साथ यहाँ आया हूँ। मैं यहाँ निर्णायक मंडल के अध्यक्ष के तौर पर आ चुका हूँ; मैं यहाँ एक प्रशंसक के तौर पर आ चुका हूँ, मैं यहाँ आ चुका हूँ; क्योंकि ये मेरे लोग हैं, और मुझे अपने लोगों से जुड़ने की ज़रूरत है।
यह महोत्सव विचारों का मेला है, कर्म का उत्सव है और नए काम का उत्प्रेरक है। यही वह जगह है, जहाँ पर ‘न्यूज़वीक’ के पूर्व फ़िल्म समीक्षक पॉल ज़िमरमैन ने, मार्टिन और मुझे, उनकी लिखी हुई एक पटकथा दी थी। हमें वह बहुत पसंद आई। बात को संक्षेप में कहें तो हमने अंततः उस पर फ़िल्म भी बनाई—‘किंग ऑफ़ कॉमेडी’। Cannes निश्चित ही एक उर्वर भूमि है। जेन रोज़ेंथॉल और क्रेग हैटकॉफ़ के साथ मिलकर हमने जब 2002 में ट्राईबेका फ़िल्म महोत्सव शुरू किया तो Cannes ही हमारी कसौटी रहा। 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के रूप में आई आपदा के बाद, लोगों को हमारे आस-पास वापस ले आना हमारी प्रेरणा थी। जिस समय हमारी उपस्थिति एक अंतरराष्ट्रीय घटना के तौर पर दर्ज हो रही थी, Cannes की प्रेरणा ही हमारा पथ-प्रदर्शन कर रही थी।
हमें गर्व है कि Cannes की तरह हम भी खुले विचारों वाले और लोकतांत्रिक होने के लिए जाने जाते हैं।
लोकतांत्रिक... यही वह शब्द है! मेरे देश में, हम उस लोकतंत्र को बचाने के लिए जी-जान से लड़ रहे हैं, जिसे हम एक समय पर पर्याप्त महत्त्व नहीं देते थे। यह हम सभी को प्रभावित करता है। यह हम सभी को प्रभावित करता है, क्योंकि कलाएँ लोकतांत्रिक हैं। कलाएँ समावेशी होती हैं; ये लोगों को साथ लाती हैं, मसलन—आज की रात। कला सत्य को खोजने का प्रयत्न करती है। कला विविधता को अपनाती है। इसीलिए कला एक ख़तरा है। इसीलिए हम एक ख़तरा हैं—निरंकुशों और फ़ाशीवादियों के लिए।
अमेरीका के अशिक्षित राष्ट्रपति ने ख़ुद को, ख़ुद ही से, हमारे कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक संस्थानों में से एक का सर्वेसर्वा नियुक्त कर लिया है। उसने कला, मानविकी और शिक्षा के लिए अनुदान और समर्थन रोक दिए हैं... और अब उसने अमेरिका के बाहर निर्मित होने वाली फ़िल्मों पर सौ प्रतिशत टैरिफ़ थोप दिया है। एक क्षण का समय लें और इसे समझने की कोशिश करें। आप रचनात्मकता पर कोई दाम नहीं लगा सकते, लेकिन ज़ाहिरन आप उसपे टैरिफ़ तो लगा ही सकते हैं।
यह—निश्चित ही—अस्वीकार्य है। ये सारे आक्रमण अस्वीकार्य हैं... और यह केवल अमेरिका की समस्या नहीं है, यह एक वैश्विक समस्या है। यह कोई चलचित्र नहीं है, अतः हम सिर्फ़ आराम से बैठकर देख ही नहीं सकते। हमें कुछ करना होगा, और हमें यह जल्द ही करना होगा। बिना हिंसा के, लेकिन एक महान् दृढ़ निश्चय के साथ। यही सही समय है कि वे सभी जो स्वतंत्रता के बारे में परवाह करते हैं, वे एक साथ आएँ और विरोध दर्ज कराएँ। और जब चुनाव हों, तो मतदान करें... मतदान करें। इस गौरवशाली उत्सव में, आज, और अगले ग्यारह दिन, हम कला का जश्न मना कर, अपनी ताक़त और प्रतिबद्धता दिखाएँ।
स्वतंत्रता! समानता! बंधुत्व!
~~~
स्रोत : YouTube
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
26 मई 2025
प्रेम जब अपराध नहीं, सौंदर्य की तरह देखा जाएगा
पिछले बरस एक ख़बर पढ़ी थी। मुंगेर के टेटिया बंबर में, ऊँचेश्वर नाथ महादेव की पूजा करने पहुँचे प्रेमी युगल को गाँव वालों ने पकड़कर मंदिर में ही शादी करा दी। ख़बर सार्वजनिक होते ही स्क्रीनशॉट, कलात्मक-कैप
31 मई 2025
बीएड वाली लड़कियाँ
ट्रेन की खिड़कियों से आ रही चीनी मिल की बदबू हमें रोमांचित कर रही थी। आधुनिक दुनिया की आधुनिक वनस्पतियों की कृत्रिम सुगंध से हम ऊब चुके थे। हमारी प्रतिभा स्पष्ट नहीं थी—ग़लतफ़हमियों और कामचलाऊ समझदारियो
30 मई 2025
मास्टर की अरथी नहीं थी, आशिक़ का जनाज़ा था
जीवन मुश्किल चीज़ है—तिस पर हिंदी-लेखक की ज़िंदगी—जिसके माथे पर रचना की राह चलकर शहीद हुए पुरखे लेखक की चिता की राख लगी हुई है। यों, आने वाले लेखक का मस्तक राख से साँवला है। पानी, पसीने या ख़ून से धुलकर
30 मई 2025
एक कमरे का सपना
एक कमरे का सपना देखते हुए हमें कितना कुछ छोड़ना पड़ता है! मेरी दादी अक्सर उदास मन से ये बातें कहा करती थीं। मैं तब छोटी थी। बच्चों के मन में कमरे की अवधारणा इतनी स्पष्ट नहीं होती। लेकिन फिर भी हर
28 मई 2025
विनोद कुमार शुक्ल का आश्चर्यलोक
बहुत पहले जब विनोद कुमार शुक्ल (विकुशु) नाम के एक कवि-लेखक का नाम सुना, और पहले-पहल उनकी ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ हाथ लगी, तो उसकी भूमिका का शीर्षक था—विनोद कुमार शुक्ल का आश्चर्यलोक। आश्चर्यलोक—विकुशु के