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मुनि नथमल

1920 - 2010 | झुंझुनू, राजस्थान

जैन धर्म के श्वेतांबर तेरापंथ के दसवें संत। योगी-दार्शनिक-लेखक-वक्ता और कवि के रूप में योगदान।

जैन धर्म के श्वेतांबर तेरापंथ के दसवें संत। योगी-दार्शनिक-लेखक-वक्ता और कवि के रूप में योगदान।

मुनि नथमल के उद्धरण

अनुरक्ति की आँख से गुण दिखता है। विरक्ति की आँख से दोष दिखता है। मध्यस्थता की आँख से गुण और दोष दोनों दिखते हैं।

अहिंसा कायरता के आवरण में पलने वाला क्लैब्य नहीं है। वह प्राण-विसर्जन की तैयारी में सतत जागरूक पौरुष है।

धर्म सत्य है। सत्य देश और काल से अबाधित होता है। देश बदल जाने पर धर्म नहीं बदलता। काल बदल जाने पर धर्म नहीं बदलता।

जो व्यक्ति सत्य का साक्षात्कार और प्रतिपादन दोनों करता है, वह तीर्थंकर होता है। बुद्ध भी तीर्थंकर थे। शंकराचार्य ने कपिल और कणाद को भी तीर्थंकर कहा है।

घड़ी काल नहीं है। वह काल की गति का सूचक यंत्र कभी शीघ्र चलने लगता है और कभी मंद। यह गतिभेद इस सत्य की सूचना देता है कि काल और घड़ी एक नहीं है। धर्म और धर्म-संस्थान भी एक नहीं हैं।

वास्तविकता यह है कि प्रत्येक तीर्थंकर आदिकर होता है। वह किसी पुराने शास्त्र के आधार पर सत्य का प्रतिपादन नहीं करता। वह सत्य का साक्षात्कार कर उसका प्रतिपादन करता है। इस दृष्टि से प्रत्येक तीर्थंकर पहला होता है, अंतिम कोई भी नहीं होता।

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