व्यंग्य पर निबंध
व्यंग्य अभिव्यक्ति की
एक प्रमुख शैली है, जो अपने महीन आघात के साथ विषय के व्यापक विस्तार की क्षमता रखती है। काव्य ने भी इस शैली का बेहद सफल इस्तेमाल करते हुए समकालीन संवादों में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। इस चयन में व्यंग्य में व्यक्त कविताओं को शामिल किया गया है।
बंग-विच्छेद (शिवशंभू के चिट्ठे और ख़त)
गत 16 अक्टूबर को बंगविच्छेद या बंगाल का पार्टीशन हो गया। पूर्व बंगाल और आसाम का नया प्रांत बनकर हमारे महाप्रभु माई लार्ड इंग्लैंड के महान राजप्रतिनिधि का तुग़लकाबाद आज़ाद हो गया। भंगड़ लोगों के पिछले रगड़े की भाँति यही माई लार्ड की सबसे पिछली प्यारी
बालमुकुंद गुप्त
एक दुराश (शिवशंभू के चिट्ठे और ख़त)
नारंगी के रस में ज़ाफ़रानी बसंती बूटी छानकर शिवशंभु शर्मा खटिया पर पड़े मौजों का आनंद ले रहे थे। ख़याली घोड़े की बाग़ें ढीली कर दी थीं। वह मनमानी जकंदे भर रहा था। हाथ-पाँवों को भी स्वाधीनता दे दी गई थी। वह खटिया के तूलअरज की सीमा उल्लंघन करके इधर-उधर
बालमुकुंद गुप्त
पीछे मत फेंकिए (शिवशंभू के चिट्ठे और ख़त)
माई लार्ड! सौ साल पूरे होने में अभी कई महीनों की कसर है। उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी ने लार्ड कार्नवालिस को दूसरी बार इस देश का गवर्नर-जनरल बनाकर भेजा था। तब से अब तक आप ही को भारतवर्ष का फिर से शासक बनकर आने का अवसर मिला है। सौ वर्ष पहले के उस समय की ओर
बालमुकुंद गुप्त
आशा का अंत (शिवशंभू के चिट्ठे और ख़त)
माई लार्ड! अब के आपके भाषण ने नशा किरकिरा कर दिया। संसार के सब दुःखों और समस्त चिंताओं को जो शिवशंभू शर्मा दो चल्लू बूटी पीकर भुला देता था, आज उसका उस प्यारी विजया पर भी मन नहीं है। आशा से बँधा हुआ यह संसार चलता है। रोगी को रोग से क़ैदी को क़ैद से, ऋणी
बालमुकुंद गुप्त
बनाम लोर्ड कर्ज़न (शिवशंभू के चिट्ठे और ख़त)
माई लार्ड! लड़कपन में इस बूढ़े भंगड़ को बुलबुल का बड़ा चाव था। गाँव में कितने ही शौकीन बुलबुल बाज़ थे। वह बुलबुलें पकड़ते थे, पालते थे और लड़ाते थे, बालक शिवशंभू शर्मा बुलबुलें लड़ाने का चाव नहीं रखता था। केवल एक बुलबुल को हाथपर बिठाकर ही प्रसन्न होना
बालमुकुंद गुप्त
वायसराय का कर्तव्य (शिवशंभू के चिट्ठे और ख़त)
माई माई लार्ड! आपने इस देश में फिर पदार्पण किया, इससे यह भूमि कृतार्थ हुई। विद्वान बुद्धिमान और विचारशील पुरुषों के चरण जिस भूमि पर पड़ते हैं, वह तीर्थ बन जाती है। आप में उक्त तीन गुणों के सिवा चौथा गुण राजशक्ति का है। अतः आपके श्रीचरण-स्पर्श से भारतभूमि
बालमुकुंद गुप्त
लार्ड मिंटो का स्वागत (शिवशंभु के चिट्ठे)
भगवान करे श्रीमान् इस विनय से प्रसन्न हों—मैं इस भारत देश की मट्टी से उत्पन्न होने वाला, इसका अन्न फल मूल आदि खाकर प्राण-धारण करने वाला, मिल जाए तो कुछ भोजन करने वाला, नहीं तो उपवास कर जाने वाला, यदि कभी कुछ भंग प्राप्त हो जाए तो उसे पीकर प्रसन्न होने