Font by Mehr Nastaliq Web

रैदास के 10 प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ दोहे

7
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

मस्जिद सों कुछ घिन नहीं, मंदिर सों नहीं पिआर।

दोए मंह अल्लाह राम नहीं, कहै रैदास चमार॥

तो मुझे मस्जिद से घृणा है और ही मंदिर से प्रेम है। रैदास कहते हैं कि वास्तविकता यह है कि तो मस्जिद में अल्लाह ही निवास करता है और नही मंदिर में राम का वास है।

रैदास

हिंदू पूजइ देहरा मुसलमान मसीति।

रैदास पूजइ उस राम कूं, जिह निरंतर प्रीति॥

हिंदू मंदिरों में पूजा करने के लिए जाते हैं और मुसलमान ख़ुदा की इबादत करने के लिए मस्जिदों में जाते हैं। दोनों ही अज्ञानी हैं। दोनों को ही ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम नहीं है। रैदास कहते हैं कि मैं जिस राम की आराधना करता हूँ, उसके प्रति मेरी सच्ची प्रीति है।

रैदास

ऊँचे कुल के कारणै, ब्राह्मन कोय होय।

जउ जानहि ब्रह्म आत्मा, रैदास कहि ब्राह्मन सोय॥

मात्र ऊँचे कुल में जन्म लेने के कारण ही कोई ब्राह्मण नहीं कहला सकता। जो ब्रहात्मा को जानता है, रैदास कहते हैं कि वही ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी है।

रैदास

प्रेम पंथ की पालकी, रैदास बैठियो आय।

सांचे सामी मिलन कूं, आनंद कह्यो जाय॥

रैदास कहते हैं कि वे प्रेम−मार्ग रूपी पालकी में बैठकर अपने सच्चे स्वामी से मिलने के लिए चले हैं। उनसे मिलने की चाह का आनंद ही निर्वचनीय है, तो उनसे मिलकर आनंद की अनुभूति का तो कहना ही क्या!

रैदास

माथे तिलक हाथ जपमाला, जग ठगने कूं स्वांग बनाया।

मारग छाड़ि कुमारग उहकै, सांची प्रीत बिनु राम पाया॥

ईश्वर को पाने के लिए माथे पर तिलक लगाना और माला जपना केवल संसार को ठगने का स्वांग है। प्रेम का मार्ग छोड़कर स्वांग करने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होगी। सच्चे प्रेम के बिना परमात्मा को पाना असंभव है।

रैदास

रैदास प्रेम नहिं छिप सकई, लाख छिपाए कोय।

प्रेम मुख खोलै कभऊँ, नैन देत हैं रोय॥

रैदास कहते हैं कि प्रेम कोशिश करने पर भी छिप नहीं पाता, वह प्रकट हो ही जाता है। प्रेम का बखान वाणी द्वारा नहीं हो सकता। प्रेम को तो आँखों से निकले हुए आँसू ही व्यक्त करते हैं।

रैदास

रैदास जीव कूं मारकर कैसों मिलहिं खुदाय।

पीर पैगंबर औलिया, कोए कहइ समुझाय॥

रैदास कहते हैं कि जीव को मारकर भला ख़ुदा की प्राप्ति कैसे हो सकती है, यह बात कोई भी पीर, पैगंबर या औलिया किसी को क्यों नहीं समझाता?

रैदास

जनम जात मत पूछिए, का जात अरू पात।

रैदास पूत सब प्रभु के, कोए नहिं जात कुजात॥

रैदास कहते हैं कि किसी की जाति नहीं पूछनी चाहिए क्योंकि संसार में कोई जाति−पाँति नहीं है। सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं। यहाँ कोई जाति, बुरी जाति नहीं है।

रैदास

रैदास इक ही बूंद सो, सब ही भयो वित्थार।

मुरखि हैं तो करत हैं, बरन अवरन विचार॥

रैदास कहते हैं कि यह सृष्टि एक ही बूँद का विस्तार है अर्थात् एक ही ईश्वर से सभी प्राणियों का विकास हुआ है; फिर भी जो लोग जात-कुजात का विचार अर्थात् जातिगत भेद−विचार करते हैं, वे नितांत मूर्ख हैं।

रैदास

मुसलमान सों दोस्ती, हिंदुअन सों कर प्रीत।

रैदास जोति सभ राम की, सभ हैं अपने मीत॥

हमें मुसलमान और हिंदुओं दोनों से समान रूप से दोस्ती और प्रेम करना चाहिए। दोनों के भीतर एक ही ईश्वर की ज्योति प्रकाशित हो रही है। सभी हमारे−अपने मित्र हैं।

रैदास

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere