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शमशेर बहादुर सिंह के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण

शमशेर बहादुर सिंह के

प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण

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सारी कलाएँ एक-दूसरे में समोई हुई हैं, हर कला-कृति दूसरी कलाकृति के अंदर से झाँकती है।

शमशेर बहादुर सिंह

भाषा की जान होता है मुहावरा।

शमशेर बहादुर सिंह

अगर कविता (जिसे कहते हैं) ‘जीवन से फूटकर’ निकलती है, तो उसमें जीवन की सारी बेताब उलझनें और आशाएँ और शंकाएँ और कोशिशें और हिम्मतें कवि के अंदर की पूरी ईमानदारी के साथ अपने सरगम के पूरे बोल बजाने लगेंगी।

शमशेर बहादुर सिंह

प्रभाव सभी कवियों और कलाकारों पर पड़ते हैं।

शमशेर बहादुर सिंह

प्रकाशन-प्रदर्शन औसत-अक्षम कलाकार को खा जाता है।

शमशेर बहादुर सिंह

आगे का कलाकार मेहनतकश की ओर देखता है।

शमशेर बहादुर सिंह

सरलता का आकाश जैसे त्रिलोचन की रचनाएँ।

शमशेर बहादुर सिंह

व्यक्ति-मन होता है जन-मन के लिए।

शमशेर बहादुर सिंह

…जो कविता का विकास होता है, वो रचना की अपनी शर्तों पर होता है।

शमशेर बहादुर सिंह

भाषा की अवहेलना किसी भी रचना को सहज ही साहित्य के क्षेत्र से बाहर फेंक देती है और शिल्प की अवहेलना कला के क्षेत्र से।

शमशेर बहादुर सिंह

कविता में सामाजिक अनुभूति काव्य-पक्ष के अंतर्गत ही महत्त्वपूर्ण हो सकती है।

शमशेर बहादुर सिंह

कविता को उस तरह नहीं रिवाइज़ किया जा सकता, जैसे किसी निबंध या स्पीच को।

शमशेर बहादुर सिंह

कला कैलेंडर की चीज़ नहीं है।

शमशेर बहादुर सिंह

कवि का कर्म अपनी भावनाओं में, अपनी प्रेरणाओं में, अपने आंतरिक संस्कारों में, समाज-सत्य के मर्म को ढालना—उसमें अपने को पाना है, और उस पाने को अपनी पूरी कलात्मक क्षमता से पूरी सच्चाई के साथ व्यक्त करना है, जहाँ तक वह कर सकता हो।

शमशेर बहादुर सिंह

अर्थ प्राणों में समाता है, निकलता नहीं।

शमशेर बहादुर सिंह

क्यों—क्यों हम एक सरल प्लॉट अपने जीवन का नहीं बना सकते? विश्वव्यापी घटनाएँ हरेक के जीवन में गई हैं।

शमशेर बहादुर सिंह

निरा संयोग दुनिया में कुछ नहीं होता।

शमशेर बहादुर सिंह

भाषा की जान होता है मुहावरा।

शमशेर बहादुर सिंह

काव्य-कला समेत जीवन के सारे व्यापार एक लीला ही हैं—और यह लीला मनुष्य के सामाजिक जीवन के उत्कर्ष के लिए निरंतर संघर्ष की ही लीला है।

शमशेर बहादुर सिंह

एक तरह से हर कवि अपने आपको कम-ओ-बेश फ़ुलफ़िल करता है। वह अपनी unique quality को discover करता है। साहित्य, साधना का मार्ग है।

शमशेर बहादुर सिंह

अनोखी और अजीब और नई चीज़ें ज़रूरी नहीं कि बेशक़ीमती भी हों। वह परखने पर हल्की और घटिया, बल्कि सुबह की शाम बासी भी हो सकती हैं—एकदम बासी।

शमशेर बहादुर सिंह