मंगलेश डबराल के 10 प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण
मंगलेश डबराल के 10 प्रसिद्ध
और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण
अच्छे आदमी बनो—रोज़ मैं सोचता हूँ। क्या सोचकर अच्छा आदमी हुआ जा सकता है? अच्छा आदमी क्या होता है? कैसा होता है? किसकी तरह?
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टैग : जीवन
जो नहीं हैं, मैं उनकी जगह लेना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ, वे मेरे मुँह से बोलें।
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टैग : भाषा
कविता में कभी अच्छा मनुष्य दिख जाता है या कभी अच्छे मनुष्य में कविता दिख जाती है। कभी-कभी एक के भीतर दोनों ही दिख जाते हैं।
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टैग : कविता
मुझे अपनी कविताओं से भय होता है, जैसे मुझे घर जाते हुए भय होता है।
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टैग्ज़ : कविताऔर 1 अन्य
ख़ामोश होता हूँ तो वैसी कविता नहीं लिख सकता जैसी लिखना चाहता हूँ और बातूनी होने पर ख़राब आदमी होने का भय है।
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टैग : कवि
कहीं रास्ता भटक जाता हूँ तो घबराहट ज़रूर होती है, लेकिन यह भी लगता है कि अच्छा है इस रास्ते ने मुझे ठग लिया।
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टैग : यात्रा
मैं ऐसे छोटे-छोटे झूठ बोलता हूँ जिनसे दूसरों को कोई नुक़सान नहीं होता। लेकिन उनसे मेरा नुक़सान ज़रूर होता है।
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टैग : सच
कविता अपने समय के संकटों को पूरी सचाई से कभी व्यक्त नहीं कर पाती, इसलिए उसमें हमेशा ही संकट बना रहता है।
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टैग : कविता
यथार्थ! यह संसार का सबसे कठिन शब्द है। करोड़ों जीवन यथार्थ को समझते-समझाते बीत गए।
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टैग : समय