कुँवर नारायण के 10 प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण

कुँवर नारायण के 10 प्रसिद्ध

और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण

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भाषा के पर्यावरण में कविता की मौजूदगी का तर्क जीवन-सापेक्ष है : उसके प्रेमी और प्रशंसक हमेशा रहेंगे—बहुत ज़्यादा नहीं, लेकिन बहुत समर्पित!

कुँवर नारायण

दुनिया जैसी है और जैसी उसे होना चाहिए के बीच कहीं वह एक लगातार बेचैनी है।

कुँवर नारायण

कविता यथार्थ को नज़दीक से देखती, मगर दूर की सोचती है।

कुँवर नारायण

कविता में ‘मैं’ की व्याख्या केवल आत्मकेंद्रण या व्यक्तिवाद के अर्थ में करना

उसके बृहतर आशयों और संभावनाओं दोनों को संकुचित करना है।

कुँवर नारायण

अगर राजनीति के बाहर भी स्वतंत्रता के कोई मतलब हैं तो हमें उसको एक ऐसी भाषा में भी खोजना, और दृढ़ करना होगा जो राजनीति की भाषा नहीं है।

कुँवर नारायण

भाषा का बहुस्तरीय होना उसकी जागरूकता की निशानी है।

कुँवर नारायण

जीवन-बोध, केवल वस्तुगत नहीं, चेतना-सापेक्ष होता है, और साहित्य की निगाह दोनों पर रहती है।

कुँवर नारायण

कोई भी कला सबसे पहले रचनात्मकता का अनुभव है। रचनात्मकता ही एक कला का प्रमुख विषय (content) होता है।

कुँवर नारायण

श्रेष्ठ कलाओं में अंतर्विरोध नहीं होता, विभिन्नताओं का समन्वय और सहअस्तित्व होता है।

कुँवर नारायण

किसी भी कला का जीवन अपने में अकेला होते हुए भी संदर्भ-बहुल भी होता है।

कुँवर नारायण

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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