Font by Mehr Nastaliq Web
Vishnu Khare's Photo'

विष्णु खरे

1940 - 2018 | छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश

समादृत कवि-आलोचक और अनुवादक। कविता का एक अलग मुहावरा गढ़ने और काव्य-विषय-वैविध्य के लिए उल्लेखनीय।

समादृत कवि-आलोचक और अनुवादक। कविता का एक अलग मुहावरा गढ़ने और काव्य-विषय-वैविध्य के लिए उल्लेखनीय।

विष्णु खरे के उद्धरण

14
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

हर प्रकाशित पंक्ति साहित्य नहीं होती, बल्कि सच्चाई यह है कि हर युग में अधिकांश साहित्य ‘पेरिफ़ेरी’ का साहित्य होता है जो सिर्फ़ छपता चला जाता है।

समय या इतिहास में लौटना एक सैद्धांतिक संभावना तो है ही और समर्थ रचनाकारों के हाथों में यह एक सशक्त हथियार रहा है।

यदि कवि अपनी कविता की व्याख्या करने के लिए व्याकुल होता है तो इसका यही अर्थ हो सकता है कि या तो उसे पाठक के विवेक पर भरोसा नहीं है अथवा अपनी कृति के सामर्थ्य पर।

अच्छा कवि बहुत ज़िद्दी होता है और कविता लिखते समय अपने विवेक और शक्ति के अलावा किसी और को नहीं मानता।

कोई भी अच्छा कवि किसी भी आलोचक की गिरफ़्त में पूरा नहीं आता।

प्रत्येक कवि हर समय ऐसा नहीं लिखता जो ‘साहित्य’ भी हो तथा प्रकाश्य भी।

कुछ कवि और कुछ कविताएँ इतने असली होते हैं कि किसी भी ऐसे समीक्षक के लिए, जो बेशर्मी से समसामयिक रूढ़ियाँ नहीं दुहरा रहा है, बहुत बड़ी कठिनाई हो जाते हैं।

किसी अच्छी किताब की मुकम्मल समीक्षा के लिए शायद दूसरी ही किताब लिखनी पड़ती है और फिर भी लगेगा कि कुछ छूट-सा गया है।

बुद्धिमान कवि के यहाँ सरलता भी एक तरह की जटिलता ही होती है।

  • संबंधित विषय : कवि

जिसे मानवता के इतिहास का एहसास नहीं है, उसे मानवता के वर्तमान और भावी संकटों का एहसास भी नहीं हो सकता।

‘सामाजिक’ विषयों पर लिखी गई कविता, यदि वह फूँक-फूँक कर नहीं लिखी गई है तो तुरंत एक ढर्रे का शिकार होती है और उसका अधिकांश हिस्सा अख़बारनवीसी बन कर रह जाता है।

प्रत्येक सही साहित्यकार या तो अपने कर्तव्य जानता है या वे उसके लेखन से ही पैदा होते हैं और फिर भी उस पर लाज़िमी नहीं होते।

यह कहना कठिन है कि अनुभूति से विचार उपजता है या विचार से अनुभूति—या ये दोनों अलग-अलग हैं भी या नहीं...

हर युग में कविता की एक प्रमुख प्रवृत्ति होती है और अधिकांश कवियों की शक्ति उसे अभिव्यक्त करने में जुटी होती है।

मनुष्य को ‘रैशनल’, ‘सोशल एनीमल’ अवश्य कहा जा सकता है; लेकिन समाज में ‘रैशनल’ और ‘सोशल’ एक साथ हो पाना कम से कम निर्ममता की हद तक ईमानदार तथा संवेदनशील व्यक्ति के लिए संभव नहीं है।

इस बात से किसी को असहमति नहीं हो सकती कि नयापन और अलगपन अपने-आपमें कोई मूल्य नहीं है। वह फ़ैशन भी हो सकता है और विदूषकता भी।

Recitation