Font by Mehr Nastaliq Web
Sundardas's Photo'

सुंदरदास

1596 - 1689 | दौसा, राजस्थान

दादूदयाल के प्रमुख शिष्यों में से एक। अद्वैत वेदांती और संत कवियों में सबसे शिक्षित कवि।

दादूदयाल के प्रमुख शिष्यों में से एक। अद्वैत वेदांती और संत कवियों में सबसे शिक्षित कवि।

सुंदरदास के दोहे

12
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

सुंदर मन मृग रसिक है, नाद सुनै जब कांन।

हलै चलै नहिं ठौर तें, रहौ कि निकसौ प्रांन॥

सुन्दर मन मृग रसिक है, नाद सुनै जब कान।

हलै चलै नहिं ठौर तें, रहौ कि निकसौ प्रांन॥

सुंदर बिरहनि अति दुखी, पीव मिलन की चाह।

निस दिन बैठी अनमनी, नैननि नीर प्रबाह॥

बहुत छिपावै आप कौं, मुझे जांगै कोइ।

सुंदर छाना क्यौं रहै, जग में जाहर होइ॥

मन ही बडौ कपूत है, मन ही महा सपूत।

सुन्दर जौ मन थिर रहै, तौ मन ही अबधूत॥

सुंदर दुर्जन सारिषा, दुखदाई नहिं और।

स्वर्ग मृत्यु पाताल हम, देखे सब ही ठौर॥

जो कोउ मारै बान भरि, सुंदर कछु दुख नांहिं।

दुर्जन मारै बचन सौं, सालतु है उर मांहिं॥

देह आप करि मांनिया, महा अज्ञ मतिमंद।

सुंदर निकसै छीलकै, जबहिं उचेरे कंद॥

सद्गुरु भ्राता नृपति कै, बेड़ी काटै आइ।

निगहबांन देखत रहैं, सुन्दर देहि छुड़ाइ॥

यौं मति जानै बावरे, काल लगावै बेर।

सुंदर सब ही देखतें, होइ राख की ढेर॥

राम नाम शंकर कह्यौ, गौरी कौं उपदेस।

सुंदर ताही राम कौं, सदा जपतु है सेस॥

सुंदर ग़ाफ़िल क्यौं फिरै, साबधान किन होय।

जम जौरा तकि मारि है, घरी पहरि मैं तोय॥

सुन्दर अविनाशी सदा, निराकार निहसंग।

देह बिनश्वर देखिये, होइ पटक मैं भंग॥

चंच संवारी जिनि प्रभू, चूंन देइगो आंनि।

सुंदर तूं विश्वास गहि, छांडि आपनी बांनि॥

कल परत पल एक हूँ, छाडे साँस उसाँस।

सुंदर जागी ख़्वाब सौं, देख तौ पिय पास॥

छपन कोटि आज्ञा करैं, मेघ पृथी पर आइ।

सुन्दर भेजैं रामजी, तहं-तहं वरषै जाइ॥

मेरै मंदिर माल धन, मेरौ सकल कुटुंब।

सुंदर ज्यौं को त्यौं रहै, काल दियौ जब बंब॥

सुंदर सद्गुरु शब्द का, ब्यौरि बताया भेद।

सुरझाया भ्रम जाल ते, उरझाया था बेद॥

संत मुक्त के पौरिया, तिनसौं करिये प्यार।

कूंची उनकै हाथ है, सुन्दर खोलहिं द्वार॥

सुन्दर तूं तौ एकरस, तोहि कहौं समुझाइ।

घटै बढै आवै रहै, देह बिनसि करि जाइ॥

सुन्दर ताला शब्द का, सद्गुरु खोल्या आइ।

भिन्न-भिन्न संमुझाय करि, दीया अर्थ बताइ॥

सुन्दर मैली देह यह, निर्मल करी जाइ।

बहुत भांति करि धोइ तूं, अठसठि तीरथ न्हाइ॥

सुन्दर गर्व कहा करै, देह महा दुर्गंध।

ता महिं तूं फूल्यौ फिरै, संमुझि देखि सठ अंध॥

चमक-दमक सब मिटि गई, जीव गयौ जब आप।

सुंदर खाली कंचुकी, नीकसि भागौ सांप॥

मेरी मेरी करत है, तोकौं सुद्धि सार।

काल अचानक मारि है, सुंदर लगै बार॥

बेद नृपति की बंदि मैं, आइ परे सब लोइ।

निहगबांन पंडित भये, क्यों करि निकसै कोइ॥

आयें हर्ष ऊपजै, गयें शोक नहिं होइ।

सुन्दर ऐसै संतजन, कोटिनु मध्ये कोइ॥

सुन्दर दोऊ दल जुरै, अरु बाजै सहनाइ।

सूरा कै मुख श्री चढै, काइर दे फिसकाइ॥

पाथर से भारी भई, कौन चलावै जाहि।

सुंदर सो कतहुं गयौ, लीयें फिरतौ ताहि॥

करै करावै रामजी, सुन्दर सब घट माँहिं।

ज्यौं दर्पन प्रतिबिंब है, लिपै-छिपै कछु नाँहिं॥

भजन किये भगवंत बसि, डोली जन की लार।

सुंदर जैसे गाय कौं, बच्छा सौं अति प्यार॥

सुंदर प्रभुजी देत हैं, पाहन मैं पहुंचाइ।

तूं अब क्यौं भूखौ रहै, काहे कौं बिललाइ॥

आज्ञा मंहिं रहत हैं, सप्त दीप नौ खंड।

सुन्दर प्रभु की त्रास तें, कंपै सब ब्रह्मांड॥

एक सीस चहुं सीस पुनि, पंच सीस षट सीस।

दश सिर और सहस्त्र सिर, नमत सकल जगदीस॥

निस दिन रिजक कौं, बादि मरै नर झूरि।

रिजक दे तुझे रामजी, जहाँ-तहाँ भरपूरि॥

सुन्दर सद्गुरु जब मिल्या, पड़दा दिया उठाइ।

ब्रह्म घौंट महि सकल जग, चित्राम दिखाइ॥

सुन्दर समुंझि विचार करि, है प्रभु पूरन हार।

तेरौ रिजक मेटि है, जानत क्यौं गवांर॥

बाणी हरि कौ लिये, सुन्दर वाही उक्त।

तुक अरु छन्द सबै मिलैं, होइ अर्थ संयुक्त॥

सुन्दर संमरथ राम कौं, करत लागै बार।

पर्वत सौं राई करै, राई करें पहार॥

सुन्दर कबहूं फुनसली, कबहूं फोरा होइ।

ऐसी याही देह मैं, क्यौं सुख पावै कोइ॥

देह कृत्य सब करत है, उत्तम मध्य कनिष्ट।

सुंदर साक्षी आतमा, दीसै मांहि प्रविष्ट॥

करै हरै पालै सदा, सुन्दर संमरथ राम।

सबही तैं न्यारौ रहै, सब मैं जिन कौ धांम॥

क्षीण सपष्ट शरीर है, शीत उष्ण तिहिं लार।

सुन्दर जन्म जरा लगै, यह पट देह विकार॥

सुन्दर साधु सदा कहैं, भक्ति ज्ञान बैराग।

जाकै निश्चय ऊपजै, ताकै पूरन भाग॥

जाकी आज्ञा मैं सदा, धरती अरु आकास।

ज्यौं राखै त्यौं ही रहै, सुन्दर मानहिं त्रास॥

सुन्दर पशु पंखी जितै, चून सबनि कौ देत।

उनकै सोदा कौन लहै, कहौ कौंन से खेत॥

दौरि-दौरि जड़ देह कौं, आपुहि पकरत आइ।

सुन्दर पेच पर्यौ कठिन, सकं नहीं सुरझाइ॥

सुन्दर ऐसी देह मैं, सुच्चि कहो क्यौं होइ।

झूठेई पाखंड करि, गर्व करै जिनि कोइ॥

सुन्दर सद्गुरु सारिषा, कौऊ नहीं उदार।

ज्ञान खजाना खोलिया, सदा अटूट भंडार॥

सुन्दर अगम अगाध गति, पल मैं बादल होइ।

गरजै चमकै बिज्जली, बरषन लागै तोइ॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

Recitation

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

टिकट ख़रीदिए