सुंदरदास के दोहे
सुंदर मन मृग रसिक है, नाद सुनै जब कांन।
हलै चलै नहिं ठौर तें, रहौ कि निकसौ प्रांन॥
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सुंदर बिरहनि अति दुखी, पीव मिलन की चाह।
निस दिन बैठी अनमनी, नैननि नीर प्रबाह॥
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बहुत छिपावै आप कौं, मुझे न जांगै कोइ।
सुंदर छाना क्यौं रहै, जग में जाहर होइ॥
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सुंदर दुर्जन सारिषा, दुखदाई नहिं और।
स्वर्ग मृत्यु पाताल हम, देखे सब ही ठौर॥
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देह आप करि मांनिया, महा अज्ञ मतिमंद।
सुंदर निकसै छीलकै, जबहिं उचेरे कंद॥
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जो कोउ मारै बान भरि, सुंदर कछु दुख नांहिं।
दुर्जन मारै बचन सौं, सालतु है उर मांहिं॥
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यौं मति जानै बावरे, काल लगावै बेर।
सुंदर सब ही देखतें, होइ राख की ढेर॥
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राम नाम शंकर कह्यौ, गौरी कौं उपदेस।
सुंदर ताही राम कौं, सदा जपतु है सेस॥
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कल न परत पल एक हूँ, छाडे साँस उसाँस।
सुंदर जागी ख़्वाब सौं, देख तौ पिय पास॥
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मेरै मंदिर माल धन, मेरौ सकल कुटुंब।
सुंदर ज्यौं को त्यौं रहै, काल दियौ जब बंब॥
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सुंदर ग़ाफ़िल क्यौं फिरै, साबधान किन होय।
जम जौरा तकि मारि है, घरी पहरि मैं तोय॥
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मेरी मेरी करत है, तोकौं सुद्धि न सार।
काल अचानक मारि है, सुंदर लगै न बार॥
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चमक-दमक सब मिटि गई, जीव गयौ जब आप।
सुंदर खाली कंचुकी, नीकसि भागौ सांप॥
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भजन किये भगवंत बसि, डोली जन की लार।
सुंदर जैसे गाय कौं, बच्छा सौं अति प्यार॥
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बेद नृपति की बंदि मैं, आइ परे सब लोइ।
निहगबांन पंडित भये, क्यों करि निकसै कोइ॥
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पाथर से भारी भई, कौन चलावै जाहि।
सुंदर सो कतहुं गयौ, लीयें फिरतौ ताहि॥
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देह कृत्य सब करत है, उत्तम मध्य कनिष्ट।
सुंदर साक्षी आतमा, दीसै मांहि प्रविष्ट॥
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सुंदर मुख मैं हाड सब, नैन नासिका हाड।
हाथ पांव सब हाड के, क्यौं नहि समुझत रांड॥
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अग्नि कर्म संयोग तें, देह कड़ाही संग।
तेल लिंग दोऊ तपै, शशि आतमा अभंग॥
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सुंदर देह मलीन अति, नखशिख भरे बिकार।
रक्त पीप मल मूत्र पुनि, सदा बहै नव द्वार॥
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सुंदर भजि भगवंत कौं, उधरे संत अनेक।
सही कसौटी सीस पर, तजी न अपनी टेक॥
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मारग जोवै बिरहनी, चितवै पिय की वोर।
सुंदर जियरै जक नहीं, कल न परत निस भौर॥
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तलब करै बहु मिलन की, कब मिलसी मुझ आइ।
सुंदर ऐसे ख़्वाब मौं, तलफि-तलफि जिय जाइ॥
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देह जरै दुख होत है, ऊपर लागै लौंन।
ताहू तें दु:ख दुष्ट कौ, सुंदर मानै कौंन॥
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भजत-भजत ह्वै जात है, जाहि भजै सो रूप।
फेरि भजन की रुचि रहै, सुंदर भजन अनूप॥
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सुंदर पंजर हाड कौ, चाम लपेट्यौ ताहि।
तामैं बैठ्यौ फूलि कै, मो समान को आहि॥
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सुंदर यहु मन स्वान है, भटकै घर-घर द्वार।
कहूंक पावै झूंठि कौं, कहूं पर वहु मार॥
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हँसै न बोलै नेकहूं, खाइ न पीवै देह।
सुंदर अंनसन ले रही, जीव गयौ तजि नेह॥
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सुंदर यहु मन काग है, बुरौ भलौ सब खाइ।
समुझायौ समुझै नहीं, दौरि करङ्कहि जाइ॥
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देह सुरंगी तब लगें, जब लगि प्राण समीप।
जीव जाति जाती रही, सुंदर बिदरंग दीप॥
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सुंदर मैली देह यह, निर्मल करी न जाइ।
बहुत भांति करि धोइ तूं, अठसठि तीरथ न्हाइ॥
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हलन चलन सब देह कौ, आतम सत्ता होइ।
सुंदर साक्षी आतमा, कर्म न लागै कोइ॥
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ज्यौं कौ त्यौं ही देखिये, सकल देह कौ ठाट।
सुंदर को जांणै नहीं, जीव गयौ किहिं बाट॥
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सूक्षम देह स्थूल कौ, मिल्यौ करत संयोग।
सुंदर न्यारौ आतमा, सुख-दुख इनकौ भोग॥
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ब्योम वायु पुनि अग्नि जल, पुथ्वी कीये मेल।
सुंदर इनतैं होइ का, चेतनि खेलै खेल॥
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मैं ही अति ग़ाफ़िल हुई, रही सेज पर सोइ।
सुंदर पिय जागै सदा, क्यौं करि मेला होइ॥
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सुंदर दिल की सेज पर, औरत है अरवाह।
इस कौं जाग्या चाहिए, साहिब बे परवाह॥
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एक भजन तन सौं करे, एक भजन मन होइ।
सुंदर तन मन कै परै, भजन अखंडित सोइ॥
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श्रवन नैंन मुख नासिका, ज्यौं के त्यौं सब द्वार।
सुंदर सो नहिं देखिये, अचल चलावणहार॥
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जागि करे जो बंदगी, सदा हज़ूरी होइ।
सुंदर कबहूँ न बीछुरै, साहिब सेवग दोइ॥
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राम नाम नारद कह्यौ, सोई ध्रुव के ध्यान।
प्रगट भये प्रह्लाद पुनि, सुंदर भजि भगवांन॥
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औरत सोई सेज पर, बैठा खसम हज़ूर।
सुंदर जान्यां ख़्वाब मौं, षसस गया कहुं दूर॥
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सुंदर यह मन मीन है, बंधे जिह्वा स्वाद।
कंटक काल न सूझई, करत फिरै उदमाद॥
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जौ जागै तौ पिय लहै, सोयें लहिये नांहिं।
सुंदर करिये बंदगी, तौ जाग्या दिल मांहि॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere