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सत्संग पर दोहे

भक्तिधारा में संत-महात्माओं

की संगति और उनके साथ धार्मिक चर्चा को पर्याप्त महत्ता दी गई है। प्रस्तुत चयन में सत्संग विषयक भक्ति काव्य-रूपों को शामिल किया गया है।

भजन भलो भगवान को, और भजन सब धंध।

तन सरवर मन हँस है, केसो पूरन चँद॥

संत केशवदास

माला टोपी भेष नहीं, नहीं सोना शृंगार।

सदा भाव सतसंग है, जो कोई गहे करार॥

दरिया (बिहार वाले)

संत मुक्त के पौरिया, तिनसौं करिये प्यार।

कूंची उनकै हाथ है, सुन्दर खोलहिं द्वार॥

सुंदरदास

संत समागम कीजिये, तजिये और उपाइ।

सुन्दर बहुते ऊबरे, संत संगति मैं आइ॥

सुंदरदास

दारिद सुरतरु ताप ससि, हरै सुरसरी पाप।

साधु समागम तिहु हरे, पाप दीनता ताप॥

दीनदयाल गिरि

पाँच क्लेश ब्यापै नहीं, चित होय विक्षेप।

जो जगमग सतसंग मिले, तन मन सन निर्लेप॥

युगलान्यशरण

सुन्दर या सतसंग की, महिमा कहिये कौन।

लोहा पारस कौं छुवै, कनक होत है रौन॥

सुंदरदास

जे जन हरि सुमिरन बिमुख, तासूँ मुखहुँ बोल।

राम रूप में जे पगे, तासूँ अंतर खोल॥

दयाबाई

साध संग जग में बड़ो, जो करि जानै कोय।

आधो छिन सतसंग को, कलमष डारे खोय॥

दयाबाई

जन सुन्दर सतसंग मैं, नीचहु होत उतंग।

परै क्षुद्र जल गंग मैं, उंहै होत पुनि गंग॥

सुंदरदास

यह लक्षण अनुराग के, अनुरागी उर जान।

ताको करि सतसंग पुनि, अपनेहुँ उर आन॥

रसिक अली

राज साज सब होत है, मन बंछित हू खाइ।

सुन्दर दुर्लभ संतजन, बड़े भाग तें पाइ॥

सुंदरदास

लोक प्रलोक सबै मिलै, देव इंद्र हू होइ।

सुन्दर दुर्लभ संतजन, क्यों कर पावै कोइ॥

सुंदरदास

मात पिता सबही मिलै, भइया बंधु प्रसंग।

सुन्दर सुत दारा मिलै, दुर्लभ है सतसंग॥

सुंदरदास

परसुराम सतसंग सुख, और सकल दुख जान।

निर्वैरी निरमल सदा, सुमिरन सील पिछान॥

संत परशुरामदेव

सुन्दर जौ हरि मिलन की, तौ करिये सतसंग।

बिना परिश्रम पाइये, अविगति देव अभंग॥

सुंदरदास

जन सुन्दर सतसंग तें, उपजै निर्मल बुद्धि।

जांनै सकल बिबेक करि, जीव ब्रह्म की सुद्धि॥

सुंदरदास

सुन्दर या सतसंग मैं, शब्दन को औगाह।

गोष्टि ज्ञान सदा चलै, जैसै नदी प्रवाह॥

सुंदरदास

सुन्दर सब कछु मिलत है, समये-समये आइ।

दुर्लभ या संसार मैं, संत समागम थाइ॥

सुंदरदास

जो आवै सतसंग मैं, ताकौ कारय होइ।

सुन्दर सहजै भ्रम मिटै, संसय रहै कोई॥

सुंदरदास

सुन्दर जो सतसंग मैं, बैठै आइ बराक।

सीतल और सुगंध ह्वै, चन्दन की ढिंग ढाक॥

सुंदरदास

राग द्वेष तें रहित हैं, रहित मान अपमान।

सुन्दर ऐसेै संतजन, सिरजे श्री भगवान॥

सुंदरदास

सेवा अरु तीरथ-भ्रमन, फलतेहि कालहि पाइ।

भक्तन-संग छिन एक में, परमभक्ति उपजाइ॥

ध्रुवदास

संतनि ही तें पाइये, राम मिलन कौ घाट।

सहजैं ही खुलि जात है, सुन्दर हृदय कपाट॥

सुंदरदास

जन सुन्दर सतसंग तें, पावै दुर्लभ योग।

आतम परमातम मिले, दूरि होंहि सब रोग॥

सुंदरदास

जन सुन्दर सतसंग तें, उपजै अद्वय ज्ञान।

मुक्ति होय संसय मिटै, पावै पद निर्बान॥

सुंदरदास

सुन्दर या सतसंग मैं, भेदर भेद कोइ।

जोई बैठेै नाव मैं, सो पारंगत होइ॥

सुंदरदास

साध-साध सब कोउ कहै, दुरलभ साधू सेव।

जब संगति ह्वै साध की तब पावै सब भेव॥

दयाबाई