रीतिकालीन निर्गुण संत। वर्णन शैली रोचक और भाषा में अरबी-फ़ारसी का प्रयोग। बावरी संप्रदाय से संबद्ध।
बाजत अनहद बाँसुरी, तिरबेनी के तीर।
राग छतीसो होइ रहे, गरजत गगन गंभीर॥
आठ पहर निरखत रहौ, सन्मुख सदा हज़ूर।
कह यारी घरहीं मिलै, काहे जाते दूर॥
तारनहार समर्थ है, अवर न दूजा कोय।
कह यारी सत्तगुरु मिलै, अचल अरु अम्मर होय॥
दछिन दिसा मोर नइहरो, उत्तर पंथ ससुराल।
मानसरोवर ताल है, तहँ कामिनि करत सिंगार॥
बेला फूलां गगन में, बंकनाल गहि मूल।
नहिं उपजै नहिं बीनसै, सदा फूल कै फूल॥
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