शरीफ़ज़ादे
मैं भीतर आया तो पाओलिन दे लुजी ने हाथ हिलाकर मेरा स्वागत किया। फिर कुछ देर चुप्पी छाई रही। उसका स्कार्फ़ और तौलियों का बना टोप आरामकुर्सी पर लापरवाही से पड़े थे।
“मादाम,” मैंने अपनी बात ज़रा खोलकर कही, “क्या आपको याद है कि ठीक दो साल पहले आज ही के दिन