1949 | इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
समादृत कथाकार। समय-समय पर काव्य-लेखन भी।
गर्मी बहुत तेज़ थी। तीन-चार दिनों से बराबर लू चल रही थी और जगह-जगह मौतें हो रही थीं। शहर की सड़कें चूल्हे पर चढ़े तवे की तरह तप रही थीं। बड़े लोगों ने दरवाज़ों पर खस की टट्टियाँ लगवा ली थीं और उनके नौकर उन्हें पानी से तर कर रहे थे। दूकानों पर पर्दे गिरे
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