Font by Mehr Nastaliq Web

ज़ाकिर हुसैन : एक उस्ताद का जीवन

इतना बोलता हुआ, इतना प्रसन्नमन, ऊर्जस्वी और संगीतमय मनुष्य आपने उनके पहले कब देखा था? उस्ताद ज़ाकिर हुसैन कुल मिलाकर 73 वर्षों तक इस दुनिया में रहे; लेकिन इस एक उम्र में उन्होंने कई ज़िंदगियाँ जी लेने का वैसा ही जादू कर दिखाया है, जैसा वह अपने तबले के साथ पृथ्वी के रंगमंच पर पिछले पाँच दशकों से अनवरत करते आए थे। 

उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत के इतिहास में उस्ताद पहले ऐसे तबलानवाज़ थे जिसने गंभीर को लोकप्रिय बनाने की तरकीबें खोजीं, रियाज़ और नवाचार के कारख़ाने में उन्हें आज़माया, पुरानी और पारंपरिक चीज़ों के नए नाम रखे और उन्हें चुपचाप क्लैसिकल संगीत की बुनियादी तालीम से दूर रहने वाले बहुसंख्यक लोगों के कानों और दिलों में उतारा—इस सिलसिले में उन्होंने ताल-विद्या के पारिभाषिक शब्दों के स्थान पर अलग-अलग लय-गतियों की पहचान और आस्वाद के लिए ‘मोर का नृत्य’, ‘हिरन की चाल’, ‘शेर का हमला’, क्रिकेट और हॉकी के खेल के साधारण और परिचित बिंबों का इस्तेमाल किया; कठिन को सरल-सुबोध बनाया और ‘शास्त्रीयता’ नाम की अलभ्य वस्तु—जिसे कुछ कलाकारों की निजी जागीर माना जाता रहा है—को घरानों के बीच से उठाकर लाखों-करोड़ों आम हिंदुस्तानियों के बीच रख दिया। 

इस अभियान में टीवी ने उनकी बड़ी मदद की। अस्सी के दशक के अंत और नब्बे की शुरुआत में टेलीविज़न की अथाह लोकप्रियता ने उनके तबले के जादू और कलाकार-मिजाज़ की नरमी को पूरी दुनिया में लोकप्रिय और ‘वाह उस्ताद!’ या ‘अरे हुज़ूर! वाह ताज बोलिए!’ को एक मुहावरा बना दिया था।

कालजयी सितारवादक पंडित रविशंकर के बाद इस महान् भारतीय कलाकार को भी पश्चिम का संगीत भी बहुत क़ायदे से समझ में आया था। अस्ल में पंडितजी के बाद हिंदुस्तानी संगीत की वैश्विक पहचान और प्रतिष्ठा का ध्वज ज़ाकिर हुसैन साहब के हाथों में ही था। उस्ताद जितने बड़े सोलो तबलावादक थे, उसी वज़्न के संगतकार भी थे और रविशंकरजी, उस्ताद अली अकबर, उस्ताद विलायत ख़ाँ, पंडित शिवकुमार शर्मा, पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, हरिहरन या शंकर महादेवन के ही नहीं; फ्यूज़न में जॉन मैक्लॉगलिन, सेल्वागणेश विनायक राम, राकेश चौरसिया और गणेश राजगोपाल के साथ मिलकर भी उन्होंने यादगार संरचनाओं का आविष्कार किया। ग्रैमी अवॉर्ड्स संगीत की दुनिया के सबसे भरोसेमंद पुरस्कार हैं। पिछली दफ़ा पाँच भारतीय कलाकारों ने अलग-अलग श्रेणियों मे कुल आठ पुरस्कार जीते। उस्ताद ज़ाकिर हुसैन को तीन, बाँसुरीवादक राकेश चौरसिया को दो और गायक शंकर महादेवन, वायलिनवादक गणेश राजगोपालन और लोकप्रिय परक्यूशनिस्ट सेल्वागणेश विनायक राम को एक-एक ग्रैमी पुरस्कार मिला।

उस्ताद ने लंबी दोस्ताना साझेदारियाँ निभाईं। पिता और गुरु उस्ताद अल्लारक्खा और पिता के समकक्ष रविशंकरजी के साथ संगत से शुरू होकर यह सिलसिला उनके बेटे की उम्र के बाँसुरीवादक राकेश चौरसिया तक आया। राकेश चौरसिया और उस्ताद ज़ाकिर हुसैन के सवाल-जवाब से अलंकृत ‘ऐज़ वी स्पीक’ और ‘पश्तो’ नाम के दो गाने शास्त्रीय लयगति के सुंदर उदाहरण हैं, जिनमें प्रवाह, ऊर्जा और अप्रत्याशित की मौजूदगी में जीवन का अनोखा ‘सेलिब्रेशन’ है। ‘ऐज़ वी स्पीक’ को ‘बेस्ट कंटेंपरेरी इंस्ट्रूमेंटल एलबम’ श्रेणी और ‘पश्तो’ को ‘बेस्ट म्यूज़िकल परफ़ॉर्मेन्स’ श्रेणी में अवार्ड्स मिले। यों, राकेश और ज़ाकिर की जोड़ी पिछले लगभग दो दशकों से जुगलबंदी करती आई है। 

वैसे ही ‘बेस्ट ग्लोबल म्यूज़िक एल्बम’ शीर्षक श्रेणी में पुरस्कृत एल्बम ‘दिस मोमेंट’ जिस फ्यूज़न ग्रुप ‘शक्ति’ की उपज है—वह पाँच दशक पुराना एक समूह है, जिसे अपने यौवन के दिनों में गिटारवादक जॉन मैक्लाकग्लिन, उस्ताद ज़ाकिर हुसैन और घट्टमवादक टी. एच. विनायकराम उर्फ़ विक्कू ने मिलकर बनाया था। पंडित शिवकुमार शर्मा, पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, यू श्रीनिवास और एल. शंकर जैसे निष्णात संगीतकार उस समूह के अतिथि कलाकार थे। पूरी दुनिया में घूम-घूमकर ‘लाइव’ प्रस्तुतियाँ दे चुकने के बाद 2024 के अप्रैल में ‘शक्ति’ का यह एल्बम पुरस्कृत हुआ। अंतर सिर्फ़ इतना था कि इस समूह में टी.एच. विक्कू की जगह उनके बेटे सेल्वागणेश विनायक राम ने ले ली।

बनारस संसार का एकमात्र ऐसा शहर है जो एक साथ तबले, गायकी और कथक नृत्य—तीनों का घराना है। इस बात का अभिमान हम सबको—हर बनारसी को—है। स्वयं उस्ताद इस बात के लिए बनारस के सम्मुख हमेशा पूरे विनय और सम्मान के साथ झुके रहे। जब-जब अवसर आया, उन्होंने बनारस घराने के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

हम लोग जानते हैं कि उस्ताद ज़ाकिर हुसैन पंजाब घराने के योग्यतम कलाकारों में से एक और अपने पिता पद्मभूषण उस्ताद अल्लारक्खा के सर्वप्रमुख शिष्य थे। इतिहास में एक समय ऐसा भी था, जब पचास के दशक में, बंबई में संगीत के कद्रदानों और फिल्मोद्योग से जुड़े लोगों के बीच उस्ताद अल्लारक्खा और पंडित किशन महाराज के बीच श्रेष्ठता का एक नितांत कलात्मक युद्ध भी चल रहा था। उन दोनों मूर्धन्यों में से कोई किसी से कम नहीं था। अवसर और स्थान सीमित थे और सिंहासन पर कोई एक ही बैठ सकता था। उस लड़ाई में न कोई जीता न कोई हारा; लेकिन उस दोस्ताना लड़ाई से कोई ख़लिश नहीं पैदा हुई, बल्कि दोनों महान् एक दूसरे के घर और घराने के और क़रीब आ गए। किसी तरह की प्रतियोगिता के बाद और ज़्यादा मित्र बन जाने का यह शील और संस्कार शायद सिर्फ़ संगीतकारों में होता है।

बनारस घराने की गत-फ़र्द, यहाँ के मूर्धन्य तबलावादकों की लय-गति, चाल से, यहाँ की मनूक्ति (पराल) से, उठान के औद्धत्य और यहाँ के तबले की हाज़िरजवाबी से उस्ताद ने बहुत कुछ सीखा और अपने शिल्प में आत्मसात् कर लिया। बेशक़ बनारस की नौजवान पीढ़ी भी उनकी साधना से बहुत कुछ सीखती आई है।

बनारस के वयोवृद्ध तबलावादक पंडित कामेश्वरनाथ मिश्र एक संस्मरण सुनाते हैं—संभवतः हरिवल्लभ संगीत समारोह में विदुषी गिरिजा देवी जी के गायन के बाद पंडित सामता प्रसाद उर्फ़ गुदई महाराज जी का तबलावादन था। सभागार में तिल रखने की जगह नहीं थी। गिरिजा देवी के साथ घंटे भर संगत कर चुकने के बाद तनिक मुक्त होकर कामेश्वर जी बाहर टहलने निकले तो क्या देखते हैं कि सर्दियों की रात में सड़क पर लगे लाउडस्पीकर के पास खड़ा होकर दुशाला ओढ़े एक लड़का तबले के आवाज़ की रिकार्डिंग कर रहा है। वह और कोई नहीं हमारे उस्ताद थे। 

उस्ताद ने अपने पिता और गुरु उस्ताद अल्ला रक्खा साहब की जन्मशती का आग़ाज़ मुंबई में बनारस घराने के तबलावादन से किया और बनारस घराने के ख़लीफ़ा—बनारस घराने के संस्थापक पंडित रामसहाय के वंशज—पंडित संजू सहाय को सादर आमंत्रित किया और मंच पर उनके चरण छुए। संजू जी उम्र में उनसे बहुत छोटे थे, लेकिन उस्ताद का सिर तो परंपरा के सामने झुक रहा था।

नमन उस्ताद! आज नाद ब्रह्म की उपासक सभ्यता आपको प्रणाम कर रही है। जाइए! वहाँ जुगलबंदी के अमर मंच पर गुरु और पिता उस्ताद अल्ला रक्खा के साथ पंडित अनोखेलाल, पंडित सामता प्रसाद और पंडित किशन महाराज भी अपने-अपने साज़बाज के साथ आपका इंतिज़ार कर रहे हैं। आपकी आत्मा को शांति और स्थिरता का नहीं, लय और गति का वरदान मिला है।

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

07 अगस्त 2025

अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ

07 अगस्त 2025

अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ

श्रावण-मास! बारिश की झरझर में मानो मन का रुदन मिला हो। शाल-पत्तों के बीच से टपक रही हैं—आकाश-अश्रुओं की बूँदें। उनका मन उदास है। शरीर धीरे-धीरे कमज़ोर होता जा रहा है। शांतिनिकेतन का शांत वातावरण अशांत

10 अगस्त 2025

क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़

10 अगस्त 2025

क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़

Husayn remarked ironically, “A nation whose most notable manifestations are tombs and corpses!” Pointing to one of the pyramids, he continued: “Look at all that wasted effort.” Kamal replied enthusi

08 अगस्त 2025

धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’

08 अगस्त 2025

धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’

यह वाक्य महज़ धड़क 2 के बारे में नहीं कहा जा रहा है। यह ज्योतिबा फुले, भीमराव आम्बेडकर, प्रेमचंद और ज़िंदगी के बारे में भी कहा जा रहा है। कितनी ही बार स्कूलों में, युवाओं के बीच में या फिर कह लें कि तथा

17 अगस्त 2025

बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है

17 अगस्त 2025

बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है

• विद्यापति तमाम अलंकरणों से विभूषित होने के साथ ही, तमाम विवादों का विषय भी रहे हैं। उनका प्रभाव और प्रसार है ही इतना बड़ा कि अपने समय से लेकर आज तक वे कई कला-विधाओं के माध्यम से जनमानस के बीच रहे है

22 अगस्त 2025

वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है

22 अगस्त 2025

वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है

प्रिय भाई, मुझे एहसास है कि माता-पिता स्वाभाविक रूप से (सोच-समझकर न सही) मेरे बारे में क्या सोचते हैं। वे मुझे घर में रखने से भी झिझकते हैं, जैसे कि मैं कोई बेढब कुत्ता हूँ; जो उनके घर में गंदे पं

बेला लेटेस्ट