वालिद के नाम एक ख़त
ज़ुबैर सैफ़ी 10 मई 2024
प्यारे अब्बा!
मैं जानता हूँ कि मैं इस तहरीर के पहले लफ़्ज़ को आपको पुकारने के लिए इस्तेमाल करने के लायक़ नहीं हूँ। मैं यह भी जानता हूँ कि मैंने होश सँभालने से लेकर अब तक आपको सिर्फ़ दुख पहुँचाया है। हाँ! यह सच है कि मैं आपका हिस्सा हूँ, लेकिन यह भी है कि मैं आपका ‘अच्छा हिस्सा’ कहलाने के लायक़ भी नहीं हूँ। मुझे मालूम है कि आपके सीने का दर्द, दर्द नहीं—‘मैं’ हूँ। मेरी नाकामियाँ, हठधर्मिता, ज़िद और बेज़ारी हमेशा से आपके सीने का बोझ रही है। लेकिन अब्बा इसमें आपकी कोई ख़ता नहीं है, सारी ख़ताएँ मेरी हैं। मैं अपनी अना को आगे रखते हुए आपको ताउम्र दुख पहुँचाता रहा हूँ।
अब्बा!
मेरी ग़लती बस यह है कि मैंने किसी से मुहब्बत कर ली। हालाँकि आप कहते थे, “लोअर मिडिल क्लास लड़कों को मुहब्बत करने की इजाज़त नहीं होती।” लेकिन मुझसे यह ग़लती हो चुकी, एक बार नहीं दो बार। और दोनों बार मैं वहीं आकर खड़ा हूँ—जहाँ ना कोई मेरे साथ है, और ना ही किसी का शफ़क़त से भरा हाथ मेरे सर पर है। सिर्फ़ एक काला धुआँ है जो मेरे सर से पैरों तक लिपटा हुआ है और मुझे खा रहा है।
आज लेटे हुए आपकी नीम बंद आँखें बार-बार चीख़-चीख़ कर मुझसे यह कह रही हैं कि क़ुबूल करो, यह सब तुम्हारा किया-धरा है। इसके ज़िम्मेदार तुम हो।
मैं इसका एतराफ़ करता हूँ, यह सब मेरी बदौलत है, आपकी इस हालत का ज़िम्मेदार मैं हूँ, मेरे अलावा कोई नहीं। मुझे वो सब याद पड़ रहा है, जब साइकिल पर आप मुझे स्टेशन छोड़ने जाया करते थे ताकि मैं बड़े शहर में पढ़ूँ और आपका नाम बुलंद करूँ। मुझे वो दिन भी याद आ रहा है, जब आपने ख़ुद एक पुरानी जैकेट पहनकर मुझे कॉलेज आने-जाने के लिए दो नई जर्सियाँ दिलाईं थी। मैं अब भी उसी दुकान पर खड़ा हूँ अब्बा! लेकिन मेरे पास उन जर्सियों की आबरू रखने के लिए एक वजूद नहीं है।
अब्बा!
मैं क्या करूँ और किस तरह से आपकी चाहत को मुक़म्मल करूँ ताकि आपको यह एतबार हो कि मैंने कोशिश की—सब सही कर सकूँ लेकिन आपके पास मुझ पर एतबार करने की कोई दलील भी तो नहीं। मैंने तब-तब आपका एतबार तोड़ा, जब-जब आपने मुझ पर आँख मूँदकर एतबार किया।
मैं चाहता था कि मैं अपनी ज़िम्मेदारियों को अच्छे से निभाऊँ लेकिन ना जाने मुझ पर मुहब्बत की नाकामी का आसेब कब आन चढ़ा कि मैं कुछ भी करने के क़ाबिल नहीं रहा। आप कहते थे कि 14 साल की उम्र की पीठ की दिक़्क़त उस रोज़ ख़ुद ठीक हो जाएगी, जब आपको पीठ पर मेरा सहारा मिल जाएगा। मुझे माफ़ करना! मैं आपकी पीठ बनने की बजाय आपकी पीठ तोड़ चुका।
अब्बा !
आपका यह बेटा हमेशा एक नाकाम शख़्स रहा। ज़िंदगी में, मुहब्बत में और अब रिश्तों में भी। उसने वो सब कुछ खो दिया, जो उसे सँभाल कर रखना था। अब इस मोड़ पर मेरे ख़ाली हाथों में दुआ के लिए हिम्मत भी नहीं क्योंकि मुझमें से दीन तो दबे-पाँव कब का जा चुका। मैं हमेशा ‘बेटा’ बनने के लिए तरसा। हो सके तो मेरी ख़ताओं को दरगुज़र कर देना।
आपका ‘नालायक़’
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