वियोगिनी ठाकुर के बेला
प्रेम तुम्हारे लिए नहीं है
पेट में कई रोज़ से पीर उठती है। उठती क्या है बंद ही नहीं है। जितनी देर आँख लगी रहे, उतनी ही देर पता नहीं चलता। नहीं तो हर पल छोटी-छोटी सुइयाँ चुभती हुई महसूस होती हैं। कभी लगता है बहुत सारे कीड़े
1992 | बदायूँ, उत्तर प्रदेश
नई पीढ़ी की कवयित्री और गद्यकार।
नई पीढ़ी की कवयित्री और गद्यकार।