विशाखदत्त के उद्धरण

जिस प्रकार सागर रत्नों की ख़ान है, उसी प्रकार जो शास्त्रों की ख़ान है, उसके गुणों से भी हम संतुष्ट नहीं होते जब हम उससे ईर्ष्या करते हैं।
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भाग्य के मारे हुए व्यक्ति की संपूर्ण बुद्धि विपरीत हो जाती है।
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