रविंद्र कुमार के बेला
बेदिल की दिल्ली
विगत कई दिनों से हमारा मन दिल्ली से बाहर कहीं दूर जाने को छटपटा रहा था। लगभग दो महीने से राजधानी के एक बंद 20×20 के किराये के कमरे में कैद रहते-रहते दिमाग, दिल और शरीर—सब सुस्त और कुछ-कुछ रोबोट जैसे
मृत्यु ही जीवन का सबसे विश्वसनीय वादा है
जिस क्षण हम जन्म लेते हैं, उसी क्षण मृत्यु हमारे साथ चल पड़ती है। हमारा हर क़दम अपनी मृत्यु की ओर उसकी छाया की तरह उठता है। हर बीता हुआ कल वर्तमान में समाकर आने वाले कल से मिलने की दिशा में बढ़ता है।