दादा धर्माधिकारी के उद्धरण

क्रांति में मूल्य का परिवर्तन होगा। सबसे पहले हमें अपने जीवन में परिवर्तन करना होगा।
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सबको खाना, कपड़ा, मकान, मिल जाना क्रांति नहीं है। जितनी ज़रूरत हो, उतना खाना मिले, कपड़े की ज़रूरतें पूरी हो जाएँ, हर एक को रहने के लिए अच्छा मकान मिल जाए—यह मनुष्य को सुखी जानवर बना सकता है, लेकिन स्वतंत्र मानव नहीं बना सकता। इसलिए यह क्रांति नहीं है।

अहिंसक प्रक्रिया में क्रांति का साध्य भी मनुष्य है और क्रांति का साधन भी मनुष्य है।
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जीविका की पद्धति में और प्रतिष्ठा में जब आमूलाग्र परिवर्तन हो तब वह क्रांति कहलाती है।
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यंत्रीकरण के साथ समाज यंत्र निष्ठ हो जाता है। यंत्र पर इतना भरोसा न हो कि वह मनुष्य की जगह ले ले। यंत्र में इतना विश्वास न हो कि मनुष्य के ऊपर भरोसा ही न रहे। आर्थिक संयोजन में यंत्र हो, यह अलग बात है, लेकिन मनुष्य की जगह यंत्र ही न आ जाए, इसकी सावधानी रखनी चाहिए।
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दुनिया में जितने धर्म हैं, जिनके कारण विरोध होता है, सरूप नहीं होता है, वे सबके सब 'अधर्म' हैं।
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