चीज़ें पर ब्लॉग

कविता के भाव में कहें

तो चीज़ें वे हैं जिनसे हमारी दुनिया बनती है और बर्बाद भी होती है। यहाँ प्रस्तुत है चीज़ों की उपस्थिति-अनुपस्थिति को दर्ज करती कविताओं का यह व्यापक चयन।

सत्य की व्याख्या साहित्य की निष्ठा है

सत्य की व्याख्या साहित्य की निष्ठा है

‘वयं रक्षामः’ के पूर्व निवेदन मेरे हृदय और मस्तिष्क में भावों और विचारों की जो आधी शताब्दी की अर्जित प्रज्ञा-पूँजी थी, उस सबको मैंने ‘वयं रक्षामः’ में झोंक दिया है। अब मेरे पास कुछ नहीं है। लुटा-पि

चतुरसेन शास्त्री
प्रति-रचनात्मकता : रचनात्मकता का भ्रम और नया समाजशास्त्र

प्रति-रचनात्मकता : रचनात्मकता का भ्रम और नया समाजशास्त्र

वाल्टर बेंजामिन का एक प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण निबंध है—‘द वर्क ऑफ़ आर्ट इन द एज ऑफ़ मेकेनिकल रिप्रोडक्शन'। बीसवीं सदी में लिखा हुआ यह निबंध आज पहले से भी कहीं अधिक प्रासंगिक और ज्वलंत दिखाई देता है। बी

आदित्य शुक्ल
सफ़र में होना क्या होता है?

सफ़र में होना क्या होता है?

उस दिन पहाड़ पर बादल तेज़ हवाओं के साथ बह रहे थे। वह बादलों की ओर देखकर शायद कोई प्रार्थना कर रही थी। मैंने कहा, “...सब आसमान की तरफ़ देखकर प्रार्थनाएँ क्यूँ करते हैं?” वह मुस्कुराते हुए बोली, “ताकि प

सौरभ अनंत
प्रसिद्धि की विडंबना

प्रसिद्धि की विडंबना

प्रसिद्धि के साथ एक मज़े की बात यह है कि जब तक प्रत्यय की तरह इसके साथ विडंबना नहीं जुड़ती, तब तक इसके छिपे हुए अर्थ हमारे सामने पूरी तरह उजागर नहीं होते। लेकिन इससे भी ज़्यादा मज़े की बात शायद यही हो

प्रियंका दुबे
कहीं जाने की इच्छा (के) लिए

कहीं जाने की इच्छा (के) लिए

मैं बहुत दिनों से एक जगह जाना चाहता हूँ। इन दिनों मेरे पास इतना अवकाश नहीं रहता कि कुछ ज़रूरी कामों के अलावा भी मैं कुछ और कर सकूँ, लेकिन उस जगह का आकर्षण ऐसा दुर्निवार है कि किसी अन्य काम में मेरा मन

अमन त्रिपाठी
हमारी इच्छाएँ हमारा परिचय हैं

हमारी इच्छाएँ हमारा परिचय हैं

यह सोचकर कितना सुकून मिलता है कि जिसे हम अपनी अस्ल ज़िंदगी में नहीं पा सके उसे एक दिन भाषा में पा लेंगे या भाषा में जी लेंगे या उसे एक दिन भाषा में जीने का मौक़ा ज़रूर मिलेगा। मुझे लगता है कि भाषा एक तरह

राकेश कुमार मिश्र
होली है आनंद की

होली है आनंद की

होली हिंदू जीवन का आनंद है। जीवन में यदि आनंद न हो तो वह किस काम का? जिये सो खेले फाग, मरे सो लेखे लाग। मानो जीवन का सुख होली है और जीना है तो होली के लिए। चार त्यौहार हिंदुओं के मुख्य हैं। श्रा

बालमुकुंद गुप्त
'लिखना ख़ुद को बचाए रखने की क़वायद भी है'

'लिखना ख़ुद को बचाए रखने की क़वायद भी है'

संतोष दीक्षित सुपरिचित कथाकार हैं। ‘बग़लगीर’ उनका नया उपन्यास है। इससे पहले ‘घर बदर’ शीर्षक से भी उनका एक उपन्यास चर्चित रहा। संतोष दीक्षित के पास एक महीन ह्यूमर है और एक तीक्ष्ण दृष्टि जो समय को बेधत

अंचित
गद्य की स्वरलिपि का संधान

गद्य की स्वरलिपि का संधान

हिंदी के काव्य-पाठ को लेकर आम राय शायद यह है कि वह काफ़ी लद्धड़ होता है जो वह है; वह निष्प्रभ होता है, जो वह है, और वह किसी काव्य-परंपरा की आख़िरी साँस गोया दम-ए-रुख़सत की निरुपायता होता है। आख़िरी बा

देवी प्रसाद मिश्र
चलो भाग चलते हैं

चलो भाग चलते हैं

तो क्या हुआ अगर मैंने ये सोचा था कि तुम चाक पर जब कोई कविता गढ़ोगी, मैं तुम्हारे नाख़ूनों से मिट्टी निकालूँगा। तो क्या हुआ अगर सघन मुलाक़ातों की उम्मीद में हमने कई मुलाक़ातों को मुल्तवी किया। उन योजना

अतुल तिवारी
क्या होम्स ब्योमकेश का पुरखा था...!

क्या होम्स ब्योमकेश का पुरखा था...!

सारे दिन हवाएँ साँय-साँय करती रही। बारिश खिड़कियों से टकराती रही थी, जिससे इस विशाल लंदन में भी जो इंसानों ने बनाया है, हम अपनी दिनचर्या भूलकर प्रकृति की लीला के विषय में सोचने पर मजबूर हो गए थे। जो मा

उपासना
शहर, अतीत और अंत के लिए

शहर, अतीत और अंत के लिए

शहर शहर अपने आपमें कितना कुछ समेटे रहता है—बहुत सारी त्रासदी, पलायन, सांप्रदायिक दंगे और बहुत सारी ख़ुशियाँ भी। आप बहुत दिनों तक अकेले पड़े रहते हैं—हॉस्टल के कमरें में, किसी लाइब्रेरी के एक कोने में

प्रदीप्त प्रीत
‘रेशमा हमारी क़ौम को गाती हैं, किसी एक मुल्क को नहीं’

‘रेशमा हमारी क़ौम को गाती हैं, किसी एक मुल्क को नहीं’

थळी से बहावलपुर, बहावलपुर से सिंध और फिर वापिस वहाँ से अपने देस तक घोड़े, ऊँट आदि का व्यापार करना जिन जिप्सी परिवारों का कामकाज था; उन्हीं में से एक परिवार में रेशमा का जन्म हुआ। ये जिप्सी परिवार क़बील

राजेंद्र देथा
उदास दिनों की पूरी तैयारी

उदास दिनों की पूरी तैयारी

शब-ओ-रोज़ छत पर जूठा था अमरूद। एक मिट्टी का दिया जिसमें सुबह, सोखे हुए तेल की गंध आती थी। कंघी के दांते टूट गए। आईने पर साबुन के झाग के सूखे निशान हैं। दहलीज़ पर अख़बारों का गट्ठर। चिट्ठीदान में नहीं

निशांत कौशिक
‘भक्त भगवानों से लगातार पूछ रहे हैं कविता क्या है’

‘भक्त भगवानों से लगातार पूछ रहे हैं कविता क्या है’

एक व्योमेश शुक्ल के अब तक दो कविता संग्रह, ‘फिर भी कुछ लोग’ और ‘काजल लगाना भूलना’ शाया हुए हैं—जिनमें तक़रीबन सौ कविताएँ हैं, कुछ ज़्यादा या कम। इन दोनों संग्रहों की‌ कविताओं पर पर्याप्त बातचीत-बहस

अमन त्रिपाठी
कुछ फ्रॉड वाक़ई रचनात्मक और अद्भुत होते हैं

कुछ फ्रॉड वाक़ई रचनात्मक और अद्भुत होते हैं

कुछ फ्रॉड वाक़ई रचनात्मक और अद्भुत होते हैं। लेखिका ली इसराइल का फ्रॉड कुछ ऐसा ही था। ली इसराइल 1970-80 के दशक की एक मशहूर बायोग्राफी राइटर थीं, लेकिन 1990 तक उनकी स्थिति बिगड़ती चली गई। वह ‘राइटर्स

मिथिलेश प्रियदर्शी
मृत्यु के आईने में जीवन कितना कुरूप दिखता होगा

मृत्यु के आईने में जीवन कितना कुरूप दिखता होगा

मन के गहरे में बस डूब है। ऐसी डूब, जिसमें उत्तरजीविता एक प्रश्न की तरह सतह पर छूट जाए। सतह पर जीवन की संभावना भी गुंजलकों के हुलिए में। डूब का समय अपनी जगह पर नहीं है। चेतना से भटका हुआ बस देह लिए मैट

आदर्श भूषण
उम्मीद अब भी बाक़ी है

उम्मीद अब भी बाक़ी है

एक एक दिन श्रीप्रकाश शुक्ल जी का फोन आया : ‘जवान होते हुए लड़के का क़बूलनामा’ संग्रह की प्रति तुरंत उपलब्ध करवाओ, ‘परिचय’ के अगले अंक में समीक्षा जानी है। मेरे पास अपने संग्रह की कोई कॉपी नहीं थी

निशांत
वसंत की चोट सबसे मारक होती है

वसंत की चोट सबसे मारक होती है

सुबह कद्दू का एक फूल खिला था—उजला! लेकिन उसके उजलेपन में भी एक मटमैली आभा थी। वैसी ही जैसे मनुष्य में होती है। कितना भी उजला हो, उसमें कुछ मटमैलापन कुछ दाग़ रह ही जाते हैं। शायद यह मटमैलापन ही उसे मनु

उपासना
सभी ज़ुबानों को सुनते रहिए

सभी ज़ुबानों को सुनते रहिए

कभी-कभी मेरे पास कुछ व्यक्तिगत संदेश आ जाते हैं कि भाषा सुधारने में मैं उनकी कुछ मदद करूँ। अनुमान है कि ये संदेश युवाओं से आते होंगे, जिनके पास मुझसे बहुत अधिक ऊर्जा और नई दृष्टि है। मैं क्या जवाब दूँ

संजय चतुर्वेदी
वह आवाज़ हर रात लौटती है

वह आवाज़ हर रात लौटती है

तवायफ़ मुश्तरीबाई के प्यार में पड़े असग़र हुसैन से उनके दो बेटियाँ हुई—अनवरी और अख़्तरी, जिन्हें प्यार से ज़ोहरा और बिब्बी कहकर बुलाया जाता। बेटियाँ होने के तुरंत बाद ही, असग़र हुसैन ने अपनी दूसरी बीवी, म

शुभम् आमेटा

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

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