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ध्रुवदास

कृष्ण-भक्त कवि। गोस्वामी हितहरिवंश के शिष्य। सरस माधुर्य और प्रेम के आदर्श निरूपण के लिए स्मरणीय।

कृष्ण-भक्त कवि। गोस्वामी हितहरिवंश के शिष्य। सरस माधुर्य और प्रेम के आदर्श निरूपण के लिए स्मरणीय।

ध्रुवदास की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 34

प्रेम-रसासव छकि दोऊ, करत बिलास विनोद।

चढ़त रहत, उतरत नहीं, गौर स्याम-छबि मोद॥

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रसनिधि रसिक किसोरबिबि, सहचरि परम प्रबीन।

महाप्रेम-रस-मोद में, रहति निरंतर लीन॥

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कुँवरि छबीली अमित छवि, छिन-छिन औरै और।

रहि गये चितवत चित्र से, परम रसिक शिरमौर॥

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कहि सकत रसना कछुक, प्रेम-स्वाद आनंद।

को जानै ‘ध्रुव' प्रेम-रस, बिन बृंदावन-चंद॥

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फूलसों फूलनि ऐन रची सुख सैन सुदेश सुरंग सुहाई।

लाड़िलीलाल बिलास की रासि पानिप रूप बढ़ी अधिकाई॥

सखी चहूँओर बिलौकैं झरोखनि जाति नहीं उपमा ध्रुव पाई।

खंजन कोटि जुरे छबि के ऐंकि नैननि की नव कुंज बनाई॥

दोहा-नवल रंगीली कुंज में, नवल रंगीले लाल।

नवल रंगीली खेल रचो, चितवनि नैन बिशाल॥

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पद 1

 

सवैया 5

 

कवित्त 21

कुंडलियाँ 14

चौपाई 7

सोरठा 3

 

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