कुंठा पर उद्धरण
कुंठा मानसिक ग्रंथि
अथवा निराशाजन्य अतृप्त भावना या ‘फ़्रस्ट्रेशन’ है। स्वयं पर आरोप में यह ग्लानि या अपराध-बोध और अन्य पर दोषारोपण में ईर्ष्या या चिढ़ का द्योतक भी हो सकता है। मन के इस भाव को—इसके विभिन्न अर्थों में कविता अभिव्यक्त करती रही है।
जब किसी की निंदा का विचार मन में उठे तो जानना कि तुम भी उसी ज्वर से ग्रस्त हो रहे हो। स्वस्थ व्यक्ति कभी किसी की निंदा में संलग्न नहीं होता।
सच तो यह है कि ऐसी योग्यता; जिसमें महान प्रेरणा न हो, जिसमें लोक-कल्याण के लिए त्याग की भावना न हो, जिसमें जन-जीवन की अंतर्धाराओं को देखने की दृष्टि न हो—ऐसी योग्यता निरर्थक है।
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