सुदीप सोहनी के कवितांश
पेड़ के तने जितने सख़्त होते हैं
रूठे प्रेमी के शब्द
उस पर उम्मीद के पंख नहीं चिपकते
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मैं कविता के एकांत में रोना चाहता हूँ
और वहीं बहाना चाहता हूँ
अधूरी इच्छाओं के आँसू
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अकेलापन कुछ-कुछ वैसा ही होता है
जैसे किसी अकेली चींटी का दीवार पर सरकना।
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मैं यात्रा में हूँ
मैं ही अब यात्रा हूँ
यात्रा जन्म देती है
अजन्मे को
मैं जन्म दे रहा हूँ
ख़ुद को।
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