साहित्य और कला की विभिन्न विधाओं का संसार
शहर शहर अपने आपमें कितना कुछ समेटे रहता है—बहुत सारी त्रासदी, पलायन, सांप्रदायिक दंगे और बहुत सारी ख़ुशियाँ भी। आप बहुत दिनों तक अकेले पड़े रहते हैं—हॉस्टल के कमरें में, किसी लाइब्रेरी के एक कोने मे ...और पढ़िए
प्रदीप्त प्रीत | 14 जुलाई 2023
थळी से बहावलपुर, बहावलपुर से सिंध और फिर वापिस वहाँ से अपने देस तक घोड़े, ऊँट आदि का व्यापार करना जिन जिप्सी परिवारों का कामकाज था; उन्हीं में से एक परिवार में रेशमा का जन्म हुआ। ये जिप्सी परिवार क़बी ...और पढ़िए
राजेंद्र देथा | 13 जुलाई 2023
शब-ओ-रोज़ छत पर जूठा था अमरूद। एक मिट्टी का दिया जिसमें सुबह, सोखे हुए तेल की गंध आती थी। कंघी के दांते टूट गए। आईने पर साबुन के झाग के सूखे निशान हैं। दहलीज़ पर अख़बारों का गट्ठर। चिट्ठीदान में नही ...और पढ़िए
निशांत कौशिक | 10 जुलाई 2023
…क्या ज़रूरी है कि आलोकधन्वा की कविताओं पर बात करते हुए यह बताया जाए कि वह एक आंदोलन से निकले हुए कवि हैं? क्या ज़रूरी है कि यह बताया जाए कि उनकी कविताएँ एक विशेष वैचारिक समझ की कविताएँ हैं? क्या ज़रूरी ...और पढ़िए
अविनाश मिश्र | 02 जुलाई 2023
अनुवाद भाषाओं और संस्कृतियों के बीच संगम का काम करता है। हिंदी में बहुत सारे अनुवाद हुए और हो रहे हैं। लेकिन एक समय हिंदी में एक ऐसी पूरी पीढ़ी पनप रही थी जो अँग्रेज़ी अनुवादों के माध्यम से संसार भर क ...और पढ़िए
अरविंद कुमार | 24 जून 2023
कुछ नए-पुराने पूर्वग्रह जो जाने-अनजाने हमारी भाषा में चले आते हैं : • 'मैंने जिसकी पूँछ उठाई, उसे मादा पाया है'—धूमिल ने आज अगर यह कविता-पंक्ति लिखी होती तो सोशल मीडिया पर उचित ही उनकी धज्जियाँ उड ...और पढ़िए
प्रियदर्शन | 23 जून 2023
काठगोदाम एक्सप्रेस। गोरखपुर से होते हुए हावड़ा जंक्शन से चल कर काठगोदाम को जाने वाली। जो कई वर्षों से प्लेटफ़ॉर्म नंबर चार पर आ रही है। धीरे-धीरे। हथिनी की तरह मथते हुए। हल्के पदचापों सहित। डेढ़-दो घंटे ...और पढ़िए
अतुल तिवारी | 17 जून 2023
मुक्तिबोध और ‘अँधेरे में’ पर मैनेजर पांडेय और अर्चना लार्क की बातचीत : अर्चना लार्क : ‘अँधेरे में’ कविता को अतीत और वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में किस तरह देखा जा सकता है? मैनेजर पांडेय : ‘अँधेरे ...और पढ़िए
अर्चना लार्क | 10 जून 2023
जिस तरह उर्दू के प्रसिद्ध कवि नासिर काज़मी शाइर होने के लिए शाइरी करने को ज़रूरी नहीं समझते, उसी तरह मेरे ख़याल से घुमक्कड़ होने के लिए घुमक्कड़ी करना ज़रूरी नहीं है। घुमक्कड़ की एक अपनी अलग पहचान होत ...और पढ़िए
असग़र वजाहत | 09 जून 2023
कुछ फ्रॉड वाक़ई रचनात्मक और अद्भुत होते हैं। लेखिका ली इसराइल का फ्रॉड कुछ ऐसा ही था। ली इसराइल 1970-80 के दशक की एक मशहूर बायोग्राफी राइटर थीं, लेकिन 1990 तक उनकी स्थिति बिगड़ती चली गई। वह ‘राइटर्स ...और पढ़िए
मिथिलेश प्रियदर्शी | 06 जून 2023