Font by Mehr Nastaliq Web
noImage

रामचरणदास

रामभक्ति शाखा के रसिक संप्रदाय से संबद्ध कवि।

रामभक्ति शाखा के रसिक संप्रदाय से संबद्ध कवि।

रामचरणदास के दोहे

1
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

राम चरन दुख मिटत है, ज्यों विरही अतिहीर।

राम बिरह सर हिय लगे, तन भरि कसकत पीर॥

राम चरन मदिरादि मद, रहत घरी दुइ जाम।

बिरह अनल उतरै नहीं, जब लगि मिलहिं राम॥

प्रेम सराहिये मीन को, बिछुरत प्रीतम नीर।

राम चरण तलफत मरे, तिमी जिय बिन रघुवीर॥

राम चरन रबिमनि श्रवत, निरषि बिरहिनी पीव।

अग्नि निरषि जिमि घृत द्रवत, राम रूप लखि जीव॥

कब नैननि भरि देखिहौं, राम रूप प्रति अंग।

राम चरन जिमि दीप छबि, लखि मरि जात पतंग॥

तुमही लगावहु तब लगे, मम सूरत रघुनाथ।

राम चरण कठ पूतरी, नचै सूत्रधर हाथ॥

राम चरन कब तब गुनन, मनन करिहि मन रोक।

जिमि कामिनी मनहि मन, त्यागि लोक परलोक॥

बुधि निश्चै तब जानिये, राम चरन दृढ़ होइ।

यथा सती पिय संग दै, जगत नेह सब खोई॥

कब रसना रामहि रटहि, जथा कूररि बिहंग।

राम चरन चातक रटत, बारह मास अभंग॥

कब होइहि संजोग अस, दीप रूप प्रभु तोर।

राम चरन देखत मरहि, मन पतंग होइ मोर॥

जथा जतन बिनु लगत मन, तिय सुत तन धनधाम।

राम चरन यहि भाँति मन, कब लागिहि पद राम॥

राम चरन गुरु एक ते, बहु गुन जाने जाइ।

जथा एक फल चाखिये, पेड़ भरे रस पाइ॥

राम चरन बिरही त्रिधा, मोर चकोर सुमीन।

सुनि यक लखि यक लीन यक, निज-निज प्रेमहिं पीन॥

सुत कलत्र धन धाम तन, मान सुजस जगबंध।

रामचरण यह सात में, करहिं ते अंध॥

परम पुरुष दशरथ सुवन, चरित अमित श्रुतिसार।

रामायण यक अक्षरो, कहत नास संसार॥

सब कहँ फूल बसत सुख, अगिन लूक सम सोहि।

सकल सुजोग कुयोग भव, रामलला बिन तोहि॥

Recitation