जूली कागावा के उद्धरण

मनुष्य की आत्मा ही राजनीति है, अर्थशास्त्र है, शिक्षा है और विज्ञान है, इसलिए अंतरात्मा को सुसंस्कृत बनाना ही सबसे अधिक आवश्यक है। यदि हम अंतरात्मा को सुशिक्षित बना लें तो राजनीति, अर्थशास्त्र, शिक्षा और विज्ञान के प्रश्न स्वयं ही हल हो जाएँगे।
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मेरे ग्रंथों में मेरी आत्मा रोती है और उसके रोने को जो कोई सुनता है, वही मेरा सच्चा मित्र है।

छोटे-छोटे बालक नक्षत्रों से बातचीत करते हैं, पुष्पों से मित्रता करते हैं, सरोवरों की अंतरात्मा से संभाषण करते हैं, वृक्षों को अपना मित्र बनाते हैं क्या ही अच्छा हो यदि मैं एक बार फिर वैसा ही बालक बन जाऊँ!
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