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अशोक वाजपेयी

1941 | दुर्ग, छत्तीसगढ़

समादृत कवि-आलोचक और संस्कृतिकर्मी। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

समादृत कवि-आलोचक और संस्कृतिकर्मी। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

अशोक वाजपेयी के उद्धरण

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अगर कविता होती तो राम और कृष्ण भी यथार्थ होते।

जितना कवि समय को, उतना ही समय कवि को गढ़ता है।

कविता परम सत्य और चरम असत्य के बीच गोधूलि की तरह विचरती है।

कविता आत्म और पर के द्वैत को ध्वस्त करती है।

शिल्प भाषा का अंतःकरण है।

कविता सरलीकरण और सामान्यीकरण के विरुद्ध अथक सत्याग्रह है।

साहित्य, लालित्य के बचाव में प्रयत्नशील बने रहने की भी भूमि है।

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कविता एकांत देती है।

कविता भाषा का भाषा में स्वराज है।

कविता भाषा का शिल्पित रूप है, कच्चा रूप नहीं।

कविता समाज नहीं, व्यक्ति लिखता है, फिर भी कविता एक सामाजिक कर्म है।

कविता का काम संसार के बिना नहीं चलता। वह उसका सत्यापन भी करती है और गुणगान भी।

कविता व्यक्ति को दूसरा बनाए जाने के क्रूर अमानवीय उपक्रम के विरुद्ध सविनय अवज्ञा है।

कविता अपने सच पर ईमानदार शक करती है।

कविता यथार्थ का बिंब भर नहीं होती। वह उसमें कुछ जोड़ती, इज़ाफ़ा करती है।

कविता कवि, पाठक और श्रोता का साझा सच है।

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