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नवीन रांगियाल

1977 | इंदौर, मध्य प्रदेश

नई पीढ़ी से संबद्ध कवि-लेखक और पत्रकार। दो कविता-संग्रह प्रकाशित-चर्चित।

नई पीढ़ी से संबद्ध कवि-लेखक और पत्रकार। दो कविता-संग्रह प्रकाशित-चर्चित।

नवीन रांगियाल के कवितांश

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मैं मरूँगा दो बार

एक बार प्रेम में

दूसरी बार जीवन में मरूँगा।

मुलाक़ातें रहती हैं समय में

मृत्यु से भी ज़्यादा देर तक।

अगर तुम चाहते हो

कि कोई तुम्हें बहुत प्रेम करे

और दुःख भी दे

तो तुम्हें मरना पड़ेगा।

आवाज़ों मुझे माफ़ करो

मैं सुन रहा हूँ बहुत सारा शोर

आख़िर इतनी भीड़

क्यों लगा रखी है ईश्वर ने दुनिया में

जिस तरफ़ सिर झुकाओ

कृपा करने खड़े हो जाते हैं।

उतना ही प्यार करो

जितना भुलाया जा सके।

अपने अकेलेपन को तोड़कर

दो टुकड़े कर लो

तुम्हारे पास जाएगा

एक और अकेलापन।

धूप कितनी क्रूर है

जिस घर में कोई मर गया

उसी के आँगन में खिल आती है

पुकारना

गुम हो जाना है

मैं तुम्हें इतना चूमना चाहता हूँ कि

पृथ्वी पर जगह ख़त्म हो जाए।

किसी को गहरी नींद सोने देना भी

प्यार करने का एक तरीक़ा है।

मैंने तुम्हें जाना और खो दिया

जान लेना एक उबाऊ चीज़ है।

जितनी बार मिलता हूँ तुमसे

उतनी बार अकेला हो जाता हूँ।

प्यार का नयापन खा जाता है

प्यार के पुरानेपन को।

तुम्हारा प्यार नहीं

मुझे मेरी भावुकता मार डालेगी।

कवि का दुर्भाग्य यह है कि

उसकी सबसे लहूलुहान कविता पर भी लोग

'वाह' कर उठते हैं!

मरे हुए आदमी को

हम याद कर सकते हैं

उसे प्यार नहीं कर सकते

उसके प्यार में

पा लेता हूँ अपना ईश्वर

और उसे खो देता हूँ।

प्रतीक्षाओं मुझे माफ़ करो

मेरे पास समय नहीं है

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