पेड़ पर दोहे

इस विशिष्ट चयन में प्रकृति

के प्रतीक और जड़-ज़मीन-जीवन के संदर्भ के साथ पेड़ या वृक्ष कविता में अपनी ज़रूरी उपस्थिति दर्ज कराते नज़र आएँगे।

हरी डारि तोड़िए, लागै छुरा बान।

दास मलूका यों कहें, अपना सा जिब जान॥

मलूकदास

पीत वर्ण तन पूर्णता

जैसे खिला उजास।

अमलतास तुझको कभी

देखा नहीं हताश॥

जीवन सिंह

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