विपथगा
यह मानवी थी या दानवी, यह मैं इतने दिन सोचकर भी नहीं समझ पाया हूँ। कभी-कभी तो यह भी विश्वास नहीं होता कि उस दिन की घटना वास्तविक ही थी, स्वप्न नहीं। किंतु फिर जब अपने सामने ही दीवार पर टंगी हुई वह टूटी तलवार देखता हूँ, तो हठात उसकी सत्यता मान लेनी पड़ती