सूरदास के 10 प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ दोहे
सुनि परमित पिय प्रेम की, चातक चितवति पारि।
घन आशा सब दुख सहै, अंत न याँचै वारि॥
प्रिय के प्रेम के या परिणाम की महत्ता को जानकर या सुनकर पपीहा बादल की ओर निरंतर देखता रहता है। उसी मेघ की आशा से सब दु:ख सहता है पर मरते दम तक भी पानी के लिए प्रार्थना नहीं करता। सच्चा प्रेम अपने प्रेमी से कभी कुछ नहीं माँगता या चाहता।
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जिन जड़ ते चेतन कियो, रचि गुण तत्व विधान।
चरन चिकुर कर नख दिए, नयन नासिका कान॥
जिस ईश्वर ने सत्व, रज, तम—इन तीन गुणों तथा पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश—इन पाँच तत्वों के द्वारा जड़ से चेतन बना दिया और हाथ, पाँव, आँख, नाक, बाल और नाखून दिए (बड़े दु:ख की बात है मनुष्य उसके गुणों का स्मरण नहीं करता)।
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असन बसन बहु बिधि दये, औसर-औसर आनि।
मात पिता भैया मिले, नई रुचहि पहिचानि॥
उसी ईश्वर ने अनेक प्रकार के भोजन वस्त्रादि समय-समय पर लाकर दिए। और साथ ही नई-नई पहचान वाले माता, पिता, भाई आदि प्रियजन भी लाकर मिलाए।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere