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रहीम के 10 प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ दोहे

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समय पाय फल होत है, समय पाय झरि जाय।

सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछिताए॥

सब समय का खेल है। समय आने पर फल पकते हैं और समय आने पर झड़ भी जाते हैं। रहीम कहते हैं कि समय ही परिस्थितियों को बदलता है अर्थात् समय सदा एक-सा नहीं रहता। इसलिए पछतावा करने का कोई तुक नहीं है।

रहीम

आप काहू काम के, डार पात फल फूल।

औरन को रोकत फिरै, रहिमन पेड़ बबूल।।

रहीम कहते हैं कि कुछ व्यक्ति दूसरों का कोई उपकार तो करते नहीं हैं, उलटे उनके मार्ग में बाधाएँ ही खड़ी करते हैं। यह बात कवि ने बबूल के माध्यम से स्पष्ट की है। बबूल की डालें, पत्ते, फल-फूल तो किसी काम के होते नहीं हैं, वह अपने काँटों द्वारा दूसरों के मार्ग को और बाधित किया करता है।

रहीम

कहि रहीम इक दीप तें, प्रगट सबै दुति होय।

तन सनेह कैसे दुरै, दृग दीपक जरु दोय॥

रहीम कहते हैं कि जब एक ही दीपक के प्रकाश से घर में रखी सारी वस्तुएँ स्पष्ट दीखने लगती हैं, तो फिर नेत्र रूपी दो-दो दीपकों के होते तन-मन में बसे स्नेह-भाव को कोई कैसे भीतर छिपाकर रख सकता है! अर्थात मन में छिपे प्रेम-भाव को नेत्रों के द्वारा व्यक्त किया जाता है और नेत्रों से ही उसकी अभिव्यक्ति हो जाती है।

रहीम

रहिमन गली है साँकरी, दूजो ना ठहराहिं।

आपु अहै तो हरि नहीं, हरि तो आपुन नाहिं॥

रहीम कहते हैं कि (मन की) गली संकरी है, उसमें एक साथ दो जने नहीं गुज़र सकते? यदि वहाँ तुम यानी तुम्हारा अहंकार है तो परमात्मा के लिए वहाँ कोई ठौर नहीं और अगर वहाँ परमात्मा का निवास है तो अहंकार का क्या काम! यानी मन ही वह प्रेम की गली है, जहां अहंकार और भगवान एक साथ नहीं गुज़र सकते, एक साथ नहीं रह सकते।

रहीम

रूप, कथा, पद, चारु पट, कंचन, दोहा, लाल।

ज्यों ज्यों निरखत सूक्ष्मगति, मोल रहीम बिसाल॥

रहीम कहते हैं कि किसी की रूप-माधुरी, कथा का कथानक, कविता, चारु पट, सोना, छंद और मोती-माणिक्य का ज्यों-ज्यों सूक्ष्म अवलोकन करते हैं तो इनकी ख़ूबियाँ बढ़ती जाती है। यानी इन सब की परख के लिए पारखी नज़र चाहिए।

रहीम

अमर बेलि बिनु मूल की, प्रतिपालत है ताहि।

रहिमन ऐसे प्रभुहिं तजि, खोजत फिरिए काहि॥

अमरबेल की जड़ नहीं होती, वह बिना जड़ के फलती-फूलती है। प्रभु बिना जड़ वाली उस लता का पालन-पोषण करते हैं। ऐसे प्रभु को छोड़कर अपनी रक्षा के लिए किसी और को खोजने की क्या आवश्यकता है! उस पर ही विश्वास रखना चाहिए।

रहीम

करम हीन रहिमन लखो, धँसो बड़े घर चोर।

चिंतत ही बड़ लाभ के, जागत ह्वै गो भोर॥

कवि रहीम कहते हैं कि कर्महीन व्यक्ति सपने में एक बड़े घर में चोरी करने जाता है। वह सोचता है कि उस संपन्न घर से काफ़ी धन-दौलत पर हाथ साफ़ कर लेगा। वह मन-ही-मन इस बात पर अत्यंत प्रसन्न होने लगा, परंतु सपना देखते-देखते सुबह हो गई, अर्थात जाग जाने से उसका सपना टूट गया। इस तरह उसकी सारी ख़ुशी काफ़ूर हो गई। कोरे सपने देखने से नहीं, बल्कि कर्म करने से ही मनचाहा फल मिलता है।

रहीम

करत निपुनई गुन बिना, रहिमन निपुन हजूर।

मानहु टेरत बिटप चढ़ि, मोहि समान को कूर॥

कवि रहीम कहते हैं कि स्वयं गुणों से रहित होने अर्थात अवगुणी होने पर भी जो गुणियों के समक्ष चतुराई दिखाने की कोशिश करता है, तो उसकी पोल खुल जाती है और वह पकड़ा जाता है। उसका यह प्रयास ऐसा होता है कि मानो वह वृक्ष पर चढ़कर अपने पाखंडी होने की घोषणा कर रहा हो, स्वयं को चिल्ला-चिल्लाकर बेवक़ूफ़ बता रहा हो।

रहीम

अंड बौड़ रहीम कहि, देखि सचिक्कन पान।

हस्ती-ढक्का, कुल्हड़िन, सहैं ते तरुवर आन॥

रहीम कहते हैं कि अच्छे वृक्ष की जड़, तना, डालियाँ या सुंदर पत्तों का ही महत्त्व नहीं होता है बल्कि वह हाथी के प्रहार तथा कुल्हाड़ियों की चोट को कितना सहन करता है, यह भी देखना चाहिए। क्योंकि इसी से उसकी श्रेष्ठता सिद्ध होती है।

रहीम

कमला थिर रहीम कहि, यह जानत सब कोय।

पुरुष पुरातन की बधू, क्यों चंचला होय।।

रहीम कहते हैं कि लक्ष्मी कहीं स्थिर नहीं रहती! यह सब जानते हैं। लक्ष्मी पुरातन (अपने से बड़ी उम्र के) पुरुष की पत्नी है, चंचल क्यों नहीं होगी? इसका यह भी अर्थ हो सकता है कि लक्ष्मी नारायण की अर्धांगिनी है, वह पूरी सृष्टि के कर्ता-धर्ता की पत्नी है, उस पर किसका वश हो सकता है!

रहीम