यदि कवि का ज्ञान-पक्ष दुर्बल है, यदि उसका ज्ञान; आत्म-पक्ष, बाह्य-पक्ष और तनाव के संबंध में अधूरा अथवा धुँधला है, अथवा यदि वह तरह-तरह के कुसंस्कारों और पूर्वग्रहों तथा व्यक्तिबद्ध अनुरोधों से दूषित है, तो ऐसे ज्ञान की मूलभूत पीठिका पर विचरण करनेवाली भावना या संवेदना निस्संदेह विकारग्रस्त होगी।