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गवरी बाई

1758 | डूंगरपुर, राजस्थान

'वागड़ की मीरा' के उपनाम से भूषित। राजस्थान की निर्गुण भक्ति परंपरा से संबद्ध।

'वागड़ की मीरा' के उपनाम से भूषित। राजस्थान की निर्गुण भक्ति परंपरा से संबद्ध।

गवरी बाई का परिचय

गवरीबाई का जन्म वि. सं. 1815 में डूंगरपुर में हुआ। इसके माता-पिता का क्या नाम था, अपने जीवन काल में कितने ग्रंथों का सृजन किया आदि-आदि तथ्य अनुसंधेय है। परन्तु उपलब्ध जानकारी से यह अवश्य ज्ञात होता है कि गवरीबाई बाल्यकाल में ही पति-सुख से वंचित हो गई थी और उसने अपना समस्त जीवन ईश्वर भक्ति-भावना में व्यतीत किया था। डूंगरपुर के राजा शिवसिंहजी द्वारा भी इसे सम्मान मिला था और उन्होंने इनके लिए एक मन्दिर भी बनवाया था।

गवरी बाई के लिखे 610 पदों का एक संग्रह उपलब्ध होता है, जिसमें उनकी भक्ति-भावना, विद्वता और आराध्य के प्रति अनन्य भावना का पता लगता है। गुजरात के आचार्य विनयमोहन शर्मा और डॉ. अम्बाशंकर नागर ने गवरीबाई को गुजरात की कवयित्री मानने का उल्लेख किया हैं, परन्तु गवरीबाई निश्चित रूप से राजस्थान की कवयित्री है।

निर्गुण शाखा के कवियों में जो स्थान सुन्दरदास का है वही स्थान निर्गुण शाखा की कवयित्रियों में गवरीबाई का है। गवरी के पदों में निर्गुण भावना के अतिरिक्त राम, कृष्ण, नटवर-नगार आदि-आदि नामों का भी उल्लेख मिलता है, परन्तु समस्त पदों में कवयित्री में निर्गुण भाव का ही प्राबल्य प्रतीत होता है।

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