लेखक ने अपने इस उपन्यास में अब तक के अपने जीवन काल को देखा है अपने विश्वस्तों से सुना है, उसी को लिपिबद्ध किया है। मानव समाज की स्थापित व्यवस्था तथा उसके परिचालन व निर्वाह में भयंकर विरोधाभास दिखाई देता है यद्यपि परमात्मा की व्यवस्था में समरूपता विद्यमान है।