साहित्य और कला की विभिन्न विधाओं का संसार
‘वयं रक्षामः’ के पूर्व निवेदन मेरे हृदय और मस्तिष्क में भावों और विचारों की जो आधी शताब्दी की अर्जित प्रज्ञा-पूँजी थी, उस सबको मैंने ‘वयं रक्षामः’ में झोंक दिया है। अब मेरे पास कुछ नहीं है। लुटा-प ...और पढ़िए
चतुरसेन शास्त्री | 16 दिसम्बर 2023
वाल्टर बेंजामिन का एक प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण निबंध है—‘द वर्क ऑफ़ आर्ट इन द एज ऑफ़ मेकेनिकल रिप्रोडक्शन'। बीसवीं सदी में लिखा हुआ यह निबंध आज पहले से भी कहीं अधिक प्रासंगिक और ज्वलंत दिखाई देता है। ब ...और पढ़िए
आदित्य शुक्ल | 13 दिसम्बर 2023
उस दिन पहाड़ पर बादल तेज़ हवाओं के साथ बह रहे थे। वह बादलों की ओर देखकर शायद कोई प्रार्थना कर रही थी। मैंने कहा, “...सब आसमान की तरफ़ देखकर प्रार्थनाएँ क्यूँ करते हैं?” वह मुस्कुराते हुए बोली, “ताकि ...और पढ़िए
सौरभ अनंत | 10 दिसम्बर 2023
प्रसिद्धि के साथ एक मज़े की बात यह है कि जब तक प्रत्यय की तरह इसके साथ विडंबना नहीं जुड़ती, तब तक इसके छिपे हुए अर्थ हमारे सामने पूरी तरह उजागर नहीं होते। लेकिन इससे भी ज़्यादा मज़े की बात शायद यही ह ...और पढ़िए
प्रियंका दुबे | 01 नवम्बर 2023
यह सोचकर कितना सुकून मिलता है कि जिसे हम अपनी अस्ल ज़िंदगी में नहीं पा सके उसे एक दिन भाषा में पा लेंगे या भाषा में जी लेंगे या उसे एक दिन भाषा में जीने का मौक़ा ज़रूर मिलेगा। मुझे लगता है कि भाषा एक तर ...और पढ़िए
राकेश कुमार मिश्र | 18 अक्तूबर 2023
मैं बहुत दिनों से एक जगह जाना चाहता हूँ। इन दिनों मेरे पास इतना अवकाश नहीं रहता कि कुछ ज़रूरी कामों के अलावा भी मैं कुछ और कर सकूँ, लेकिन उस जगह का आकर्षण ऐसा दुर्निवार है कि किसी अन्य काम में मेरा म ...और पढ़िए
अमन त्रिपाठी | 18 अक्तूबर 2023
होली हिंदू जीवन का आनंद है। जीवन में यदि आनंद न हो तो वह किस काम का? जिये सो खेले फाग, मरे सो लेखे लाग। मानो जीवन का सुख होली है और जीना है तो होली के लिए। चार त्यौहार हिंदुओं के मुख्य हैं। श्र ...और पढ़िए
बालमुकुंद गुप्त | 07 अक्तूबर 2023
संतोष दीक्षित सुपरिचित कथाकार हैं। ‘बग़लगीर’ उनका नया उपन्यास है। इससे पहले ‘घर बदर’ शीर्षक से भी उनका एक उपन्यास चर्चित रहा। संतोष दीक्षित के पास एक महीन ह्यूमर है और एक तीक्ष्ण दृष्टि जो समय को बेध ...और पढ़िए
अंचित | 21 अगस्त 2023
हिंदी के काव्य-पाठ को लेकर आम राय शायद यह है कि वह काफ़ी लद्धड़ होता है जो वह है; वह निष्प्रभ होता है, जो वह है, और वह किसी काव्य-परंपरा की आख़िरी साँस गोया दम-ए-रुख़सत की निरुपायता होता है। आख़िरी ब ...और पढ़िए
देवी प्रसाद मिश्र | 18 अगस्त 2023
तो क्या हुआ अगर मैंने ये सोचा था कि तुम चाक पर जब कोई कविता गढ़ोगी, मैं तुम्हारे नाख़ूनों से मिट्टी निकालूँगा। तो क्या हुआ अगर सघन मुलाक़ातों की उम्मीद में हमने कई मुलाक़ातों को मुल्तवी किया। उन योजन ...और पढ़िए
अतुल तिवारी | 17 अगस्त 2023