Font by Mehr Nastaliq Web

यूट्यूब के 20 साल : कुंभ जाते दादा-पोता और मोनालिसा की आँखें

मोबाइल में क्या आएगा, ये कौन तय कर रहा है? दुर्भाग्य से ये अब हमारी सरकारों के हाथ से भी बाहर निकल गया है। आप यूट्यूब पर प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं तो उसी विषय पर बात करें जिस पर बात हो रही है। कमाल तो ये है कि सब यही कर रहे हैं। अभी बीती 14 फ़रवरी को यूट्यूब के 20 साल पूरे हुए। एक सवाल तो यही है कि क्या 20 साल की उम्र का कोई भी बच्चा, बिना यूट्यूब के अपनी दुनिया सोच सकता है? 

यह पटना से बनारस जाने वाली जनशताब्दी एक्सप्रेस है। पचबजिया ट्रेन। मड़ुआडीह से नया-नया बनारस हुए रेलवे स्टेशन तक जाने वाली ये ट्रेन लगभग लाइफ़-लाइन है। पटना में जिनका इलाज नहीं हो पाता अक्सर बीएचयू (सर सुंदर लाल चिकित्सालय) आते हैं। मगर आज रोगी और तीमारदार नहीं हैं। होंगे तो और अधिक बीमार हो जाने की गुंजाइश है। इस ट्रेन में रोज़ से ज़्यादा सवारी है। कहने की बात नहीं है कि ये कुंभ जाने वाले श्रद्धालु हैं जो बस किसी भी कीमत पर इलाहाबाद जाकर कुंभ नहाना चाहते हैं। लाल चटख़ साड़ियों में माँग में सिंदूर की लंबी रेखा खींचे स्त्रियाँ ज़मीन पर बैठ गई हैं। उन्हें यात्रा से मतलब है, सुविधा की उन्हें परवाह नहीं। सिंगल सीटों पर दो लोगों को एडजेस्ट होने के बाद भी सब शांत हैं। बहुत से लोग हैं; जो कुंभ जाने ही निकले हैं, मगर पूछने पर कि कुंभ नहाने जा रहे? साफ़ मना कर दे रहे। बहुत कुरेदने पर और कुटिलता से उगलवाने की नीयत से ख़ूब सवाल पूछने पर बाँका के रास बिहारी (उम्र : 75) ने बताया कि हर बार जाते हैं तो इस बार भी जाएँगे। मगर सामने बैठा उनका पोता फ़ोन में घुसा पड़ा है। पूछने पर कि तुमको नहीं लगता कि दिक़्क़त होगी? कहता है कि हम तो बनारस ही जाएँगे। साफ़ झूठ। फिर कहता है कि रील में देखे थे, अब भीड़ नहीं है। पूछने पर की रील में और क्या-क्या देखे? कहता है : मोनालिसा, आईआईटी बाबा और भगदड़... 

बाबा के पोते से मैंने ख़ूब बातें कीं। राजनीतिक रूप से पूर्णतः निष्क्रिय हो चुके इस पोते को रील में एल्गोरिद्म जो दिखाता है, वह उसे झूठ नहीं मान पाता। सच कहने में कतराता तो है ही, मगर झूठ पर चुप भी हो जाता है। 

पता है तुमको कुंभ में कितने लोग मरे? 

—देखे तो थे मोबाइल में, याद नहीं है। 

कितने साल पर कुंभ लगा है, जानते हो? 

—144 साल पर।

तुम क्यों जा रहे हो? 

—दादा जी के साथ जाना पड़ रहा है। 

मैं जानता हूँ कि यह इसके मन की बात है। इसे कुंभ में जाना है, क्योंकि इसके पास घर पर करने को कोई ख़ास काम नहीं है। इसके स्कूल में होमवर्क नहीं मिलता। बल्कि ये बोर्ड परीक्षाओं का दौर है। कुछ सवालों-जवाबों में पड़ने के दौरान पोते ने मेरा नाम और काम पूछ लिया है। जानने के बाद कि मैं खबरें लिखता हूँ, अपने मन की बात को घूमा-फिराकर पूछ ही लिया है।

—मोनालिसवा ओइजा से चल गइल? (मोनालिसा वहाँ से चली गई है?) 

हाँ भाई। देखने जा रहे थे क्या? 

—सोचे थे कि देखेंगे। बहुत रील चला था उसका। 

कितना चला था?

—मिलियन में। 

ये सब नए ज़माने के शब्द हैं। धीरे-धीरे मेनस्ट्रीम हो रहे हैं। जैसे : रील चलना, वायरल होना, ट्रेंड करना, ट्रोल होना। यह सब कुछ आभासी दुनिया का छद्म है, जो सचमुच के मन-मिज़ाज पर अपनी मर्ज़ी का असर डालता है।

पूरा कुंभ इंस्टाग्राम की रील पर चला। पोते ने बाबा की आड़ लेकर कुंभ जाना चुन लिया है। हाथ में मोबाइल ज़रूर है, मगर एल्गोरिद्म का शिकार है। यही समझ जाने की बात है।

मोबाइल में क्या आएगा, यह कौन तय कर रहा है? दुर्भाग्य से ये अब हमारी सरकारों के हाथ से भी बाहर निकल गया है। आप यूट्यूब पर प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं, तो उसी विषय पर बात करें जिस पर बात हो रही है। कमाल तो यह है कि सब यही कर रहे हैं। अभी बीती 14 फ़रवरी को यूट्यूब के 20 साल पूरे हुए। एक सवाल तो यही है, क्या 20 साल की उम्र का कोई भी बच्चा, बिना यूट्यूब के अपनी दुनिया सोच सकता है? 

नहीं सोच सकता! अख़बार पढ़ने की आदत दशकों में लगती है। किसी मैगज़ीन का फ़ैन होने में भी बरसों लग जाते हैं। टीवी पर अभी भी लोगों के फेवरेट शो हैं। (यक़ीनन वो इंटरव्यू ही हैं।) मगर क्या मोबाइल पर ख़बरों को लेकर कोई गंभीरता बन सकी है? क्या लोगों तक हम वो बातें उतनी गंभीरता से पहुँचा पा रहे हैं, जो ज़रूरी हैं?

मरने वालों के सही आँकड़े हम (मीडिया) तक नहीं पहुँचे। जो पहुँचे उसे हमने ख़बर की तरह दिखाया। मगर हम एल्गोरिद्म की गणित का क्या करें? इसका सीधा असर मेरे बग़ल में बैठे पोते पर है। उसके मोबाइल ऑपरेटर—मोबाइल कंपनी—मोबाइल के एप्स और कुछ बच गया तो हमारी सरकार की निगरानी ने ऐसा प्रेरित कर दिया है कि वो अपने 75 साल के खाँसते-हाँफते दादा की आड़ में कुंभ जा रहा है। वहाँ भी उसे कुंभ की व्यवस्था या दुर्वव्यस्था या प्लानिंग मॉडल या कुछ भी और देखने नहीं जाना है। उसे मोनालिसा में इंट्रेंस्ट है या फिर आईआईटी वाले बाबा में। 

दोनों उसे नहीं मिलेंगे—न माया, न राम! उसका इसमें कितना दोष है? बाँका में फ़ैक्ट्रियाँ कितनी हैं? स्कूल कितने हैं? गली-गली जियो के टॉवर हैं, पाँचवीं जेनरेशन का इंटरनेट है। हाथ-हाथ मोबाइल है। जिस हाथ नहीं है, उन्हें परीक्षा पास करने पर दे देने का प्रावधान है। दस हज़ार का भी मोबाइल है तो सरकारों का हित पूरा हुआ। हुआ? यक़ीनन।


'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

07 अगस्त 2025

अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ

07 अगस्त 2025

अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ

श्रावण-मास! बारिश की झरझर में मानो मन का रुदन मिला हो। शाल-पत्तों के बीच से टपक रही हैं—आकाश-अश्रुओं की बूँदें। उनका मन

10 अगस्त 2025

क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़

10 अगस्त 2025

क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़

Husayn remarked ironically, “A nation whose most notable manifestations are tombs and corpses!” Pointing to one of the p

08 अगस्त 2025

धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’

08 अगस्त 2025

धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’

यह वाक्य महज़ धड़क 2 के बारे में नहीं कहा जा रहा है। यह ज्योतिबा फुले, भीमराव आम्बेडकर, प्रेमचंद और ज़िंदगी के बारे में भी

17 अगस्त 2025

बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है

17 अगस्त 2025

बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है

• विद्यापति तमाम अलंकरणों से विभूषित होने के साथ ही, तमाम विवादों का विषय भी रहे हैं। उनका प्रभाव और प्रसार है ही इतना ब

22 अगस्त 2025

वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है

22 अगस्त 2025

वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है

प्रिय भाई, मुझे एहसास है कि माता-पिता स्वाभाविक रूप से (सोच-समझकर न सही) मेरे बारे में क्या सोचते हैं। वे मुझे घर में

बेला लेटेस्ट