Font by Mehr Nastaliq Web

प्रेसिडेंसी कॉलेज की कुछ स्मृतियाँ

प्रथम दर्शन

मैं कक्षा में कुछ देर से ही पहुँचा था। धीमे और सधे हुए स्वर में अध्यापक महाशय अपनी बात रख रहे थे। वह गेस्ट लेक्चरर के रूप में वहाँ आए थे। उन्हें देखकर लगा, हर बार की तरह इस बार भी कोई ‘सनकी’ आ बैठा है। वह बीच-बीच में अपना सिर भी कुछ इस तरह हिलाते कि ‘सनकीत्व’ झलक दिखला जाता था। तभी मैंने पास बैठे दोस्त को भी कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया दी थी। 

आदतन मैं शिक्षकों के एकदम विलोम ही बैठता हूँ और अपने भीतर फ़िट किए गए विश्लेषण-यंत्र को ऑन कर देता हूँ, लेकिन उस रोज़ दुर्योग ऐसा बना कि मैं अच्छी दूरी पर बैठा था और बस इसी कारण से यह ‘प्रथम मिलन’ वैयक्तिक नहीं हो सका। 

धीरे-धीरे प्रोफ़ेसर सान्याल विषय पर बात करने लगे। उस रोज़ का ज़्यादा कुछ तो याद नहीं है, पर निष्कर्ष तक पहुँचते-पहुँचते उस परिचयात्मक कक्षा ने यह स्पष्ट कर दिया था कि यह व्यक्ति ‘सनकी’ तो है भई, लेकिन पहले वह ‘जीनियस’ हैं। यह क़िस्सा जो मैं आप लोगों को सुना रहा हूँ, वह है प्रोफ़ेसर गौतम सान्याल का। (बर्धमान विश्वविद्यालय वाले)

साप्ताहिक दर्शन

साल 2019 का सावन-भादों रहा होगा। प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के नए-नए अध्यक्ष बने अनिन्द्य गंगोपाध्याय स्वाभाविक ही नवाचारों में लगे हुए थे। उनके सतत यत्न के बाद प्रो. गौतम सान्याल प्रेसिडेंसी में पधारे। आलम यह कि उन्हें विश्वविद्यालय में लाने और ले जाने के लिए विभागाध्यक्ष महोदय को पीएचडी स्कॉलर तक को ‘नियुक्त’ करना पड़ा था। 

इसके पीछे कारण है भई, मिस्टर सान्याल लंबी अस्वस्थता से अभी-अभी उठे थे और यहाँ यह भी भूलने की बात नहीं है कि सान्याल महाशय बड़े मिज़ाजी हैं। ऐसी विभूतियों को असिस्टेंट तो चाहिए ही होता है… 

संभव यह भी था कि वह अपने बौद्धिक अध्यवसाय में अध्यापन का दिन भी भूल भी सकते हैं। असिस्टेंट उन्हें पहले दिन याद दिलाएगा, दूसरे दिन सुबह का समय नियत किया जाएगा और वह उनको लेकर भी आएगा…इत्यादि-इत्यादि। भारत है भई, आप ऐसे किसी भी चीज़ को यहाँ हल्के में नहीं ले सकते हैं ना! आख़िर बुधवार का दिन प्रोफ़ेसर सान्याल की कक्षा के लिए नियत किया गया।

लगभग चार महीने के सत्र में प्रोफ़ेसर सान्याल की कुल दस या बारह कक्षाएँ हुई थीं। हिंदी-कहानी का उद्भव-विकास और चार कहानियों को पढ़ाने का ज़िम्मा प्रोफ़ेसर सान्याल को सौंपा गया था। इसमें ज्ञानरंजन की ‘पिता’ कहानी से हमारा पाठ प्रवेश होना था। उसके बाद फणीश्वरनाथ रेणु की ‘पंचलाइट’ पढ़ाई जानी थी और इसी क्रम में शेखर जोशी की ‘कोसी का घटवार’ और अंततः (नई कहानी का प्रथम हस्तक्षेप?) ‘परिंदे’ से भी हमें वाक़िफ़ होना था। 

कुल जमा बात इन्हीं चार कहानियों को पढ़ते-समझते हुए ही मैंने कहानी ‘पढ़नी’ सीखी। वैसे हिंदी-गद्य को पढ़ने के प्रारंभिक सूत्र तो वेदरमण पांडेय ने मुझे देने की चेष्टा की थी, लेकिन वेदरमण पांडेय का शिक्षण ‘हिंदी बॉक्स’ के भीतर-भीतर का ही होता या कि अविस्तृत होता। बाहर की झलकियाँ ज़रा भी उनके व्याख्यान में ‘मुझे’ नहीं मिलती थीं और मैं सदा का बावरा अहेरी—आउट ऑफ़ द बॉक्स सोचने-पढ़ने-समझने के लिए अत्यातुर था। 

फिर क्या, मुझे जो चाहिए था यह सब कुछ ही मुझे प्रोफ़ेसर सान्याल के व्याख्यानों में मिला। वह सनकी हैं इसीलिए जीनियस हैं। विषय को पढ़ाने-समझाने की जैसी तैयारी मैंने प्रोफ़ेसर सान्याल की देखी, हिंदी में वैसी गंभीरता और तैयारी प्रेसिडेंसी में तो नहीं ही होती है। बाक़ी कोलकाता के अन्य हिंदी-विभागों में तो यह हो पाना और भी दुर्लभ है/होगा।

उन दिनों बुधवार का इंतज़ार रहता था। मैं हर बुधवार को बड़ी शिद्दत के साथ विश्वविद्यालय इस आशा के साथ पहुँचता था कि आज फिर एक ज्ञान-वातायन खुलेगा और वातायन खुलते भी थे। उन ज्ञान-वातायनों से ऐसी हवा आती हुई महसूस होती थी, जिससे मन के भीतर की अनुभूतियों-विचारों-समझ को मतलब भर ऑक्सीजन मिल जाती थी। 

मैं उन दिनों पहली दफ़ा विश्व के बेहतरीन साहित्यकारों से परिचित हो रहा था। कहानी के ‘पाठ’ को ‘पढ़’ और ‘समझ’ रहा था। वे दिन मुझे ख़ूब याद हैं और इस जीवन में बख़ूबी याद भी रहेंगे। आज ऐसा लगता है कि प्रोफ़ेसर गौतम सान्याल बख़ूबी एक सचेत शिक्षक की भूमिका निभा रहे थे। उन्हें पता था कि साहित्य के छात्रों को साहित्य के रास्ते पर कैसे लाया जाता है। वह हाथ पकड़कर मुझ जैसे विद्यार्थी-शिशु को ज्ञान-सोपानों पर चढ़ने की शिक्षा और सामर्थ्य दे रहे थे।

एक बार कक्षा के बीच किताब पढ़ने में रुचि बढ़ाने से जुड़े सवाल पर वह एक ग़ज़ब का सूत्र दे बैठे। वह बोले—“तुझे ज़्यादा कुछ नहीं करना है। लाइब्रेरी में जाकर किताबों को पढ़ना भी नहीं है। तुम बस उन किताबों पर चढ़ी हुई धूल को झाड़कर, साफ़ भर कर दिया करो, उनको पलट लिया करो, बस! अरे उतने में बहुत ज्ञान हो जाएगा…” और वास्तव में इस सूत्र से मुझे तो बहुत लाभ हुआ है।

आज जब उस समय की स्मृतियों में दुबारा टहलता हूँ तो मालूम चलता है कि सप्ताह की एक कक्षा में कितना कुछ दिया जा सकता है। धन्य है मेरी ज्ञान-मातृका प्रेसिडेंसी का और धन्य है गौतम सान्याल जैसे शिक्षक।

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

28 नवम्बर 2025

पोस्ट-रेज़र सिविलाइज़ेशन : ‘ज़िलेट-मैन’ से ‘उस्तरा बियर्ड-मैन’

28 नवम्बर 2025

पोस्ट-रेज़र सिविलाइज़ेशन : ‘ज़िलेट-मैन’ से ‘उस्तरा बियर्ड-मैन’

ग़ौर कीजिए, जिन चेहरों पर अब तक चमकदार क्रीम का वादा था, वहीं अब ब्लैक सीरम की विज्ञापन-मुस्कान है। कभी शेविंग-किट का ‘ज़िलेट-मैन’ था, अब है ‘उस्तरा बियर्ड-मैन’। यह बदलाव सिर्फ़ फ़ैशन नहीं, फ़ेस की फि

18 नवम्बर 2025

मार्गरेट एटवुड : मर्द डरते हैं कि औरतें उनका मज़ाक़ उड़ाएँगीं

18 नवम्बर 2025

मार्गरेट एटवुड : मर्द डरते हैं कि औरतें उनका मज़ाक़ उड़ाएँगीं

Men are afraid that women will laugh at them. Women are afraid that men will kill them. मार्गरेट एटवुड का मशहूर जुमला—मर्द डरते हैं कि औरतें उनका मज़ाक़ उड़ाएँगीं; औरतें डरती हैं कि मर्द उन्हें क़त्ल

30 नवम्बर 2025

गर्ल्स हॉस्टल, राजकुमारी और बालकांड!

30 नवम्बर 2025

गर्ल्स हॉस्टल, राजकुमारी और बालकांड!

मुझे ऐसा लगता है कि दुनिया में जितने भी... अजी! रुकिए अगर आप लड़के हैं तो यह पढ़ना स्किप कर सकते हैं, हो सकता है आपको इस लेख में कुछ भी ख़ास न लगे और आप इससे बिल्कुल भी जुड़ाव महसूस न करें। इसलिए आपक

23 नवम्बर 2025

सदी की आख़िरी माँएँ

23 नवम्बर 2025

सदी की आख़िरी माँएँ

मैं ख़ुद को ‘मिलेनियल’ या ‘जनरेशन वाई’ कहने का दंभ भर सकता हूँ। इस हिसाब से हम दो सदियों को जोड़ने वाली वे कड़ियाँ हैं—जिन्होंने पैसेंजर ट्रेन में सफ़र किया है, छत के ऐंटीने से फ़्रीक्वेंसी मिलाई है,

04 नवम्बर 2025

जन्मशती विशेष : युक्ति, तर्क और अयांत्रिक ऋत्विक

04 नवम्बर 2025

जन्मशती विशेष : युक्ति, तर्क और अयांत्रिक ऋत्विक

—किराया, साहब... —मेरे पास सिक्कों की खनक नहीं। एक काम करो, सीधे चल पड़ो 1/1 बिशप लेफ़्राॅय रोड की ओर। वहाँ एक लंबा साया दरवाज़ा खोलेगा। उससे कहना कि ऋत्विक घटक टैक्सी करके रास्तों से लौटा... जेबें

बेला लेटेस्ट