Font by Mehr Nastaliq Web

जियत न परसिन माँड़ मरे परोसा खाँड़

—मुझे पूरा विश्वास है कि प्रभात रंजन शशिभूषण द्विवेदी के जनाज़े में शामिल हुए थे।

—आपको कैसे इतना यक़ीन है?

—प्रभात रंजन शशिभूषण द्विवेदी के पक्के साहित्यिक मित्र रहे हैं।

—उससे क्या होता है?

—प्रभात रंजन शशिभूषण द्विवेदी की मृत्यु के उपरांत उनके नाम से एक सालाना साहित्यिक पुरस्कार भी निकालते हैं।

—उससे भी क्या कहा जा सकता है?

—प्रभात रंजन शशिभूषण द्विवेदी की अकाल मृत्यु पर उदय प्रकाश की स्तरहीन निंदा कर चुके हैं।

—क्यों? कैसी स्तरहीन निंदा?

—प्रभात रंजन ने शशिभूषण द्विवेदी की मृत्यु का समाचार सुना था। उन्होंने फ़ेसबुक पर उदय प्रकाश द्वारा खींची चंद्रमा की कुछ तस्वीरें देखीं थीं। फिर क्या था, वह आपे से बाहर हो गए। उन्होंने उदय प्रकाश की दिवंगत माँ तक को गालियाँ देते हुए दूरभाष पर कहा था, दिल्ली में एक लेखक की मृत्यु हो गई और आप चाँद की तस्वीर खींच-पोस्ट कर रहे हैं?

—क्या उदय प्रकाश तस्वीर नहीं खींच सकते? क्या उन्हें कुछ कहने संबंधी किसी वाचाल पर विशेष रोक है या उस पर समाज का अंकुश है?

—फिर किस चीज़ से क्या होता है? शशिभूषण द्विवेदी के जनाज़े में अगर प्रभात रंजन नहीं जा सके थे, तो कौन गया था?

—शांत रहो। प्रभात रंजन मित्र हैं, तो इसका मतलब यह नहीं उन्हें जान प्यारी नहीं! शशिभूषण द्विवेदी के साथ जो हुआ सर्वग्रासी कोरोना काल में हुआ। प्रभात रंजन लॉक डाउन में अपने घर में थे। क्या पता वह स्वयं किस हाल में थे। उनके घर में दूसरे परिवारजन कैसे थे।

—घर में कैसे थे... का क्या मतलब? प्रभात रंजन जैसा मित्र, मित्र की मृत्यु का समाचार सुन घर में रह सकता है! वह भी शशिभूषण द्विवेदी जैसे कहानीकार-पत्रकार मित्र के देहांत पर?

—तो क्या पुलिस के हत्थे चढ़ जाएगा भला मानुष? या महामारी का ग्रास बन जाएगा? कोविड-संक्रमण में पड़कर तिल-तिल मरते अपनी जान गँवाएगा? कहा न तब दिल्ली में सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ा प्रावधान था। सब घर में बंद थे। पुलिस किसी को भी घर से निकलने नहीं दे रही थी।

—मैं नहीं मान सकता। शशिभूषण द्विवेदी के जनाज़े में प्रभात रंजन शामिल न थे। फिर कौन—कौन शामिल था?

—तुम्हारे मानने न मानने से कुछ नहीं होता। शशिभूषण द्विवेदी गवाही नहीं दे सकते। सच यही है कि प्रभात रंजन मित्र की अंतिम यात्रा में शामिल न हो सके। मेरे ख़याल से उन्हें इसका पछतावा ही होगा। कोई चतुर ख़ुशी या संतोष नहीं।

—कोई सबूत वग़ैरा भी है आपके पास? अंत्येष्टि की ख़बर भी तो छपी होगी अख़बार, पत्रिका, इंटरनेट में? कौन-कौन गया था अथवा पुलिस ने ही किया मृतक शशिभूषण द्विवेदी का अंतिम संस्कार।

—ख़बर क्या कहाँ छपी कौन जानता है! हाँ, प्रेमकुमार मणि ने एक आलेख ज़रूर लिखा था—अपनी फ़ेसबुक-पोस्ट के रूप में। उन्होंने लिखा युवा कवि-लेखक अविनाश मिश्र गए मित्र की अंत्येष्टि में। दूसरा कोई न जा सका। फ़ेसबुक पर वाद-विवाद, आरोप-प्रत्यारोप बहुत हुए। प्रेमकुमार मणि ने कितनों को आईना दिखाते अविनाश के प्रति बड़ा मानवीय सम्मान प्रकट किया था। उस आलेख को, उस प्रसंग को कभी भुलाया नहीं जा सकता। भुलाया नहीं जाना चाहिए।

—भुलाना याद रखना ठीक है। प्रेमकुमार मणि के सोशल मीडिया पर प्रकाशित लेख का कितना दस्तावेज़ी महत्त्व है? क्या उन्होंने अपने लेख को कहीं प्रकाशित करवाया? क्या किसी अख़बार ने उस लेख को छापा?

—मुझे नहीं मालूम। यही कहूँगा कि जितना प्रेमचंद की मृत्यु पर अमृत राय और नंददुलारे वाजपेयी के पुस्तक में लेखन का महत्त्व है, उतना ही प्रेमकुमार मणि का वह लेख महत्त्वपूर्ण है। यद्यपि शशिभूषण द्विवेदी और प्रेमचंद में दूर दूर तक कोई समानता नहीं। प्रेमचंद साहित्यिक पुरखे हैं।

—क्या बात करते हैं? प्रेमचंद के जनाज़े के संदर्भ में अमृत राय और नंददुलारे वाजपेयी दोनों के लेखन को व्योमेश शुक्ल ने झूठा कहा है। उन्होंने एक अख़बार ‘आज’ की कतरन बतौर सबूत पेश की है। किन्हीं परिपूर्णानंद की किताब का एक पन्ना भी पेश किया है। व्योमेश शुक्ल के समर्थन में पहले प्रभात रंजन ही आगे आए। उन्होंने व्योमेश के लेख को इतिहास-सुधार सरीखा महत्त्व दिया।

—व्योमेश शुक्ल कौन हैं?

—क्या बात करते हो व्योमेश शुक्ल को नहीं जानते? वह प्रधानमंत्री हैं। प्रधानमंत्री कोई मामूली शख़्सियत होती है? भले ही वह प्रधानमंत्री नागरीप्रचारिणी सभा का क्यों न हो!

—जानता हूँ, लेकिन यह कोई नया व्योमेश शुक्ल जान पड़ता है। पुराना व्योमेश शुक्ल जिसे काव्य, समीक्षा और रंगमंच के लिए जाना जाता है, ऐसी उतावली और धृष्टता नहीं दिखाएगा।

—क्यों? आपके अलावा किसी के कहने में वज़्न नहीं? व्योमेश शुक्ल का इसमें क्या स्वार्थ हो सकता है—प्रेमचंद के बनारस के नए महिमामंडन में?

—छोड़ो! मरने वाले को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। व्योमेश शुक्ल की कोई योजना होगी या क्या पता उन्हें सचमुच लगता हो कि पुराने श्रेष्ठ लेखक झूठे हैं। संभव है कि व्योमेश शुक्ल लमही का उद्धार करना चाहते हों।

—व्योमेश शुक्ल ज़िद पर अड़े हैं। उन्हें बनारस की प्रतिष्ठा की चिंता है। वह बनारस का प्रेमचंद-संबंधी कलंक धोना चाहते हैं। लमही कहाँ से आ गया बीच में?

—मरने दो! कहा न कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। बनारस की मैल कोई नहीं धो सकता। बनारस ब्राह्मणवाद से नाभिनालबद्ध है। धार्मिक राष्ट्रवाद का गढ़ है। लमही को भी कोई न कोई उद्धारक मिल ही जाएगा। कहावत है :

जियत न परसिन माँड़, मरे परोसा खाँड़।

—धोखे में न रहें। एक कहावत में सब कुछ नहीं कहा जा सकता। न यों ही कुछ भी छोड़ा जा सकता है। किसी घटना-प्रसंग के कई आयाम होते हैं।

—बात छोड़ने की नहीं, सब आयाम समेटने की नहीं; वाज़िब बोलने की है। बोलो अगर बोलने से कोई ग़लती ठीक होती है।

—ठीक है। आप ही जीते!

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

07 अगस्त 2025

अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ

07 अगस्त 2025

अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ

श्रावण-मास! बारिश की झरझर में मानो मन का रुदन मिला हो। शाल-पत्तों के बीच से टपक रही हैं—आकाश-अश्रुओं की बूँदें। उनका मन उदास है। शरीर धीरे-धीरे कमज़ोर होता जा रहा है। शांतिनिकेतन का शांत वातावरण अशांत

10 अगस्त 2025

क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़

10 अगस्त 2025

क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़

Husayn remarked ironically, “A nation whose most notable manifestations are tombs and corpses!” Pointing to one of the pyramids, he continued: “Look at all that wasted effort.” Kamal replied enthusi

08 अगस्त 2025

धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’

08 अगस्त 2025

धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’

यह वाक्य महज़ धड़क 2 के बारे में नहीं कहा जा रहा है। यह ज्योतिबा फुले, भीमराव आम्बेडकर, प्रेमचंद और ज़िंदगी के बारे में भी कहा जा रहा है। कितनी ही बार स्कूलों में, युवाओं के बीच में या फिर कह लें कि तथा

17 अगस्त 2025

बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है

17 अगस्त 2025

बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है

• विद्यापति तमाम अलंकरणों से विभूषित होने के साथ ही, तमाम विवादों का विषय भी रहे हैं। उनका प्रभाव और प्रसार है ही इतना बड़ा कि अपने समय से लेकर आज तक वे कई कला-विधाओं के माध्यम से जनमानस के बीच रहे है

22 अगस्त 2025

वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है

22 अगस्त 2025

वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है

प्रिय भाई, मुझे एहसास है कि माता-पिता स्वाभाविक रूप से (सोच-समझकर न सही) मेरे बारे में क्या सोचते हैं। वे मुझे घर में रखने से भी झिझकते हैं, जैसे कि मैं कोई बेढब कुत्ता हूँ; जो उनके घर में गंदे पं

बेला लेटेस्ट