महाप्राण निराला की आख़िरी तस्वीरें
व्योमेश शुक्ल
15 अक्तूबर 2024

महाप्राण!
आज 15 अक्टूबर है। महाप्राण निराला की पुण्यतिथि। 1961 की इसी तारीख़ को उनका निधन हुआ था।
लेकिन निराला अमर हैं। उनका मरणोत्तर जीवन अमिट है। उनकी शहादत अमर है। उनका अंत नहीं हो सकता। उन्होंने बताया भी है : ‘अभी न होगा मेरा अंत’।
नागरीप्रचारिणी सभा के विपर्यस्त छवि-संग्रह में से हम निराला के दुर्लभ चित्र आपको दिखा रहे हैं। इन्हें आज तक किसी ने नहीं देखा है। ये अनेक दशकों तक यों ही एक कोने में पड़े रहे और हमें एकाएक दिख गए। हमारा छिपाने में यक़ीन नहीं है। महान निधियों पर कुंडली मारकर बैठ जाने का हमारा कोई इरादा भी नहीं है। निराला राष्ट्र के हैं। ये चित्र भी अब राष्ट्र के हवाले हैं। इतनी अपेक्षा अवश्य है कि प्रयोग करने वाले नागरीप्रचारिणी सभा का उल्लेख अवश्य करें, क्योंकि इनका स्वत्वाधिकार हमारे पास है।
इन चित्रों में से कुछ उनके जीवनकाल के हैं, जब वह नागरीप्रचारिणी सभा पधारे थे। सभा के आर्यभाषा पुस्तकालय की उस गोष्ठी में रीतिकाल के अन्यतम कवि पद्माकर, समाजवादी चिंतक आचार्य नरेंद्र देव और किसी एक और मूर्धन्य के कुल तीन तैलचित्रों का लोकार्पण हुआ था। महाप्राण निराला मुख्य अतिथि के आसन पर शोभित हैं, लेकिन न जाने कहाँ खोए हुए से दिख रहे हैं। गांधी टोपी लगाकर बाबू संपूर्णानंद और प्रिंस सूट में दिनकरजी भी मंच पर उनके साथ विराजमान हैं। किसी साधु की मानिंद निरालाजी के हाथों में एक बहुत ऊँचा दंड भी है। एक अन्य चित्र में निरालाजी के बाएँ बेढब बनारसी माइक पर बोल रहे हैं।
कुछ चित्र बनारस की गंगाजी में निरालाजी की अस्थियों के विसर्जन के अनुष्ठान के हैं। उनमें जनता का समुद्र हिलोर मार रहा है। एक ऊँची ट्रक पर एक ओर महाप्राण निराला लिखा हुआ है और उसी ट्रक पर नागरीप्रचारिणी सभा का भी बैनर लगा है। एक चित्र में निरालाजी के आत्मज रामकृष्ण जी हैं। परिजन हैं, काशी के जन हैं और अंततः गंगाजी हैं। रेलवे स्टेशन पर अस्थि-कलश की प्रतीक्षा; स्टेशन पर ही लोगों का हुज़ूम, अस्थिकलश; काशी के घाट की छतरियाँ—इन चित्रों में अनंत यादगार विज़ुअल्स हैं, क्योंकि यह आशिक़ का जनाज़ा है; इसमें धूम है।
बाद में, सभा में हुई शोकसभा के एक चित्र में मूर्धन्य छायावादी आलोचक शांतिप्रिय द्विवेदी निरालाजी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर बोल रहे हैं।
कुल मिलाकर इन चित्रों पर हिंदी का अधिकार है। नागरीप्रचारिणी सभा इन्हें प्रस्तुत करके गहरे संतोष का अनुभव कर रही है।
नागरीप्रचारिणी सभा के प्रधानमंत्री और हिंदी के सुपरिचित कवि-गद्यकार व्योमेश शुक्ल की 14 अक्टूबर 2024 की फ़ेसबुक-पोस्ट
चित्र :
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
28 जुलाई 2025
तमाशे के पार : हिंदी साहित्य की नई पीढ़ी और एक लेखक की आश्वस्ति
इन दिनों साहित्य की दुनिया किसी मेले की तरह लगती है—शब्दों का मेला नहीं, विवादों और आक्षेपों का मेला। सोशल मीडिया की स्क्रॉलिंग करते हुए रोज़ किसी न किसी ‘साहित्यिक’ विवाद से साबका पड़ता है। लोग द
31 जुलाई 2025
सैयारा : दुनिया को उनसे ख़तरा है जो रो नहीं सकते
इन दिनों जीवन कुछ यूँ हो चला है कि दुनिया-जहान में क्या चल रहा है, इसकी सूचना सर्वप्रथम मुझे फ़ेसबुक देता है (और इसके लिए मैं मार्क ज़ुकरबर्ग या सिलिकॉन वैली में बैठे तमाम तकनीकी कीड़ों का क़तई कृतज्
13 जुलाई 2025
बिंदुघाटी : वाचालता एक भयानक बीमारी बन चुकी है
• संभवतः संसार की सारी परंपराओं के रूपक-संसार में नाविक और चरवाहे की व्याप्ति बहुत अधिक है। गीति-काव्यों, नाटकों और दार्शनिक चर्चाओं में इन्हें महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। आधुनिक समाज-विज्ञान
08 जुलाई 2025
काँदनागीत : आँसुओं का गीत
“स्त्रियों की बात सुनने का समय किसके पास है? स्त्रियाँ भी स्त्रियों की बात नहीं सुनना चाहतीं—ख़ासकर तब, जब वह उनके दुख-दर्द का बयान हो!” मैंने उनकी आँखों की ओर देखा। उनमें गहरा, काला अँधेरा जमा था,
06 जुलाई 2025
कवियों के क़िस्से वाया AI
साहित्य सम्मेलन का छोटा-सा हॉल खचाखच भरा हुआ था। मंच पर हिंदी साहित्य के दो दिग्गज विराजमान थे—सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और तत्कालीन नई पीढ़ी के लेखक निर्मल वर्मा। सामने बैठे श्रोताओं की आँखों में चमक