विरह राग में चंद बेतरतीब वाक्य
अंचित
26 जून 2024

महोदया ‘श’ के लिए
एक
‘स्त्री दुःख है।’
मैंने हिंदी समाज में गीत चतुर्वेदी और आशीष मिश्र की लोकप्रिय की गई पतली-सुतली सिगरेट जलाते हुए एक सुंदर फ़ेमिनिस्ट से कहा और फिर डर कर वाक्य बदल दिया—“प्रेम दुःख है।”
जिसका विरह झेल रहा था, उसने एक बार किसी स्त्री की जूठी सिगरेट पी लेने पर ईर्ष्या प्रकट की थी। और अब...
बार्थ की एक कहानी में प्रेम के लिए इस्तेमाल कई शब्दों में से जो शब्द सबसे ज़्यादा रूचता है, वह शब्द है ‘टेंडेरनेस’। हिंदी में इसका ठीक अनुवाद मुझे आज तक नहीं मिला। एक बूढ़े होते कवि को सबसे ज़्यादा इसी शब्द से डरना चाहिए। क्या यह सच है कि कवि प्रेम करने के पहले उसका अपूर्ण रहना सुनिश्चित करते हैं?
लॉरेंस ने कहीं लिखा है कि हमारे पास तय मात्रा में प्रेम और नफ़रत होते हैं। नाज़िम हिकमत ने एक जगह लिखा है, “बीसवीं सदी में हद से हद एक बरस टिकता है प्यार।” इक्कीसवीं सदी में क्या छह महीने?
मैं गणित में हमेशा कमज़ोर था। व्यवहारिकता में फिसड्डी और जैसा कि एक स्त्री ने कभी कहा था—बिल्कुल क्लूलेस।
दो
जो सीधा ज़ाहिर नहीं हो सकता, उसके लिए चिह्न ढूँढ़ने पड़ते हैं। जो सच नहीं हो सकता उसके लिए सपना। कवियों की फ़ंतासी में ग्लानि न मिली हो तो वह उन्हें पसंद नहीं आती। दुःख सीधा कहे जाने पर अपना अर्थ खो देता है इसलिए उसको कहे जाने के लिए प्रतीकों की ज़रूरत पड़ती है। क्या यहाँ से कविता का एक सूत्र निकलता है? कविता माने दुःख जोड़ प्रतीक।
हम दोनों बिना टिकट एक फ़िल्म देख रहे हैं। न तुम को वहाँ होना चाहिए न मुझे। बीच फ़िल्म में जाँच शुरू हो जाती है। मैं वहाँ से निकलने का एक ख़ुफ़िया रास्ता जानता हूँ। पता नहीं क्यों सोच लेता हूँ कि तुम मेरे साथ उस रास्ते चल पड़ोगी। पता नहीं क्यों नहीं सोचता कि तुम टिकट ख़रीद कर वहीं रुक जाओगी।
बहुत देर बाद समझ आएगा कि उस रास्ते पर अकेला चल रहा हूँ, कि तुम्हारी आसमानी कुर्ती के रंग मेरी हथेलियों में लग गए हैं… कि मेरी गर्दन अभी भी तुम्हारी लार से गीली है, कि कुछ रास्तों पर अकेला ही चला जाता है।
वह रास्ता मुझे बचपन की ओर ले जाएगा और तुमने मुझे जितना खोला था, मैं उससे कुछ अधिक बंद हो जाऊँगा। झूठी और गीली क़समें खाऊँगा। मेरा दिमाग़ ख़ुद से सुलह के रास्ते खोजेगा। फिर मैं तुम्हें भूल जाऊँगा।
इतना कुछ होगा और मैं सोचूँगा कि अच्छे कवियों के हिस्से ख़राब ऑब्जेक्टिव कोरिलेटिव आते हैं। शेक्सपीयर के हिस्से गरत्रुड आई थी और मेरे हिस्से तुम।
तीन
बहुत चाव से तुमने मुझे तिनके-तिनके समेटा।
उन दिनों हिमालय बारिश से भीग रहा था। मैंने बारिश देखी थी पहले, पर फिर पहली बार देखी। तुमने मुझे फिर सिखाया कि अकेलेपन में जो सर्दी गुमसुम भारी होकर देह पर जम जाती है, किसी के होने से उसके दस्तानों पर आकर जमती है—चूमे जाने की तमन्ना से भरी हुई।
तुमने दिखाया कि जितने गहरे हों घाव भर जाते हैं। एक नि:सार उदासी थी जो ख़ुद को भूलने लगी थी। एक उचाट बेचैनी जिसने शहर के नक़्शे में प्रतिबंधित जगहें बना दीं थीं। उनके ताले खुलने लगे थे। मैं एक पहाड़ पर बिल्कुल अकेला खड़ा था और सामने गहरी खाई थी। तुमने वहाँ से मुझे वापस बुलाया। मैंने फिर सीखा इंतिज़ार। और फिर...
कवियों को अपने दिमाग़ से डरना चाहिए और उनको अपने समाज की मसख़री औसतताओं से बचना चाहिए। उनको सच नहीं कहना चाहिए। उनको सच नहीं लिखना चाहिए। अपने लिए आत्ममुग्धता चाहता हूँ। बहुत सारी... और तुमको ऐसे छिटक देना जैसे तुम कभी थी ही नहीं। यह सब तुम्हारे लिए? तुम इसके काबिल नहीं।
प्रेम का कोई भी विचार अब मेरी आस्था से दूर जा चुका है और यह कि मुझे किसी और विचार में कभी कोई आस्था नहीं थी। यहाँ से कोई कहाँ जाता है?
चार
अपनी भाषा के कवियों की ओर लौटता हूँ :
मैं नहीं उन लोगों में
जो भुला पाते हैं प्यार की गई स्त्री को
और चैन से रहते हैं
— आलोकधन्वा
एक दिन सब जान ही लेते हैं :
प्रेम के बिना कोई मर नहीं जाता
— कुमार अम्बुज
अंतिम दुःख
तो शत्रु नहीं दे पाएगा
वह तो प्रेम ही देगा।
— अहर्निश सागर
मैं लॉरेंस से असहमत होना चाहता हूँ। प्रेम चूकता नहीं। बना रहता है। सलीब पर येशु को जितनी कीलों से गोदा गया, उन सबके निशान उनकी देह पर हमेशा रहे। यातना प्रेम की सबसे उत्कृष्ट अभिव्यक्ति है, किसी ने मुझसे पहले यह कह दिया होगा। लिखना भी निरंतर अपने पूर्वजों से हारना है, अपने वर्तमान से तो है ही।
भविष्य? इससे संबंधित कोई सवाल पूछना कम से कम विरह के इस अध्याय में तो उचित नहीं। व्हिटमैन, जिसको मैं आज तक अच्छा कवि नहीं मान पाया, वह यहाँ याद आए। यह सायास नहीं है—“मैं ख़ुद का खंडन करता हूँ।”
मैं अब प्रेम के लिए अप्रस्तुत हूँ। यह कोई घोषणा नहीं है। घोषणाएँ करना राजाओं का काम है। यह ख़ुद से किया गया एक प्रण माना जाए।
पाँच
तुम्हारे अदृश्य में तुम सबसे ज़्यादा पास हो।
तुम्हारी चुप्पी में भी तुमसे लंबी बात कर रहा हूँ।
इस ग़ैरज़ाहिर में सब ज़ाहिर है।
तुम इसके काबिल नहीं हो।
यह आख़िरी दर्द है जो तुम मुझे दे रही हो।
यह आख़िरी है जो तुम्हारे लिए लिख रहा हूँ।
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
07 अगस्त 2025
अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ
श्रावण-मास! बारिश की झरझर में मानो मन का रुदन मिला हो। शाल-पत्तों के बीच से टपक रही हैं—आकाश-अश्रुओं की बूँदें। उनका मन उदास है। शरीर धीरे-धीरे कमज़ोर होता जा रहा है। शांतिनिकेतन का शांत वातावरण अशांत
10 अगस्त 2025
क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़
Husayn remarked ironically, “A nation whose most notable manifestations are tombs and corpses!” Pointing to one of the pyramids, he continued: “Look at all that wasted effort.” Kamal replied enthusi
08 अगस्त 2025
धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’
यह वाक्य महज़ धड़क 2 के बारे में नहीं कहा जा रहा है। यह ज्योतिबा फुले, भीमराव आम्बेडकर, प्रेमचंद और ज़िंदगी के बारे में भी कहा जा रहा है। कितनी ही बार स्कूलों में, युवाओं के बीच में या फिर कह लें कि तथा
17 अगस्त 2025
बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है
• विद्यापति तमाम अलंकरणों से विभूषित होने के साथ ही, तमाम विवादों का विषय भी रहे हैं। उनका प्रभाव और प्रसार है ही इतना बड़ा कि अपने समय से लेकर आज तक वे कई कला-विधाओं के माध्यम से जनमानस के बीच रहे है
22 अगस्त 2025
वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है
प्रिय भाई, मुझे एहसास है कि माता-पिता स्वाभाविक रूप से (सोच-समझकर न सही) मेरे बारे में क्या सोचते हैं। वे मुझे घर में रखने से भी झिझकते हैं, जैसे कि मैं कोई बेढब कुत्ता हूँ; जो उनके घर में गंदे पं