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28 अगस्त को अजमेर में होगा ‘लहर’-संपादक प्रकाश जैन का जन्मशती-आयोजन

अजमेर की साहित्यिक धरती ने अनेक नामचीन हस्तियों को जन्म दिया है। इन्हीं में से एक हैं साहित्यकार और लघु पत्रिका लहर के संपादक प्रकाश जैन—जिन्होंने न केवल कविता के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई, बल्कि हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता को नई दिशा देने का कार्य भी किया।

28 अगस्त सन् 1926 में जन्मे प्रकाश जैन का शताब्दी वर्ष इस साल के अगस्त महीने की 28 तारीख़ से प्रारंभ हो रहा है। इस अवसर पर ‘प्रकाश जैन जन्म शताब्दी समारोह समिति’ वर्ष भर विभिन्न कार्यक्रमों को आयोजित करेगी, ताकि उनकी रचनात्मक दृष्टि और सांस्कृतिक योगदान को नए सिरे से याद किया जा सके।

28 अगस्त 2025 को अजमेर में एक विशेष समारोह आयोजित होगा, जहाँ जैन दर्शन और अन्य विषयों पर केंद्रित प्रकाश जैन की कविताओं का संग्रह ‘अंतर्यात्रा-2’ का लोकार्पण किया जाएगा। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार प्रो मोहन श्रोत्रिय अध्यक्षता करेंगे और प्रतिष्ठित कवि हेमंत शेष मुख्य अतिथि होंगे। संग्रह का संपादन उनके पुत्र संगीत जैन ने किया है।

समिति के सदस्य डॉ. अनंत भटनागर के अनुसार, पचास के दशक में अजमेर से निकलने वाली ‘लहर’ केवल एक पत्रिका नहीं थी—वह युवा लेखकों का मंच थी, वह प्रयोगधर्मी साहित्य की प्रयोगशाला थी और वह समय की सांस्कृतिक चेतना का दस्तावेज़ थी। छठे और सातवें दशक में यह पत्रिका देश की महत्त्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाओं में गिनी जाने लगी। यह प्रकाश जैन की संपादकीय दृष्टि और अद्भुत क्षमता ही थी कि पत्रिका में नवोदित प्रतिभाओं को पहचानकर आगे लाया गया। वह (प्रकाश जैन) हमेशा से साहित्यिक वर्चस्ववाद से दूर रहते हुए, पत्रिकाओं में युवाओं को स्थान देते रहे। यही कारण है कि ‘लहर’ से जुड़े अनेक लेखक आगे चलकर हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित नाम बने। उनकी पहल पर प्रकाशित विश्व कवितांक और भारतीय कवितांक आज भी पत्रिका-संसार के मानक माने जाते हैं।

उन्होंने आगे बताया कि शताब्दी वर्ष में न केवल प्रकाश जैन की रचनाओं का पुनर्पाठ किया जाएगा, बल्कि ‘लहर’ की परंपरा और साहित्यिक पत्रकारिता की भूमिका और चुनौतियों को समझने पर विमर्श, लघु पत्रिकाओं के संपादकों का सम्मेलन, छठे से आठवें दशक की साहित्यिक चेतना को परखने, लहर के अंकों का डिजिटल संग्रहण आदि पर वर्ष पर्यंत विभिन्न आयोजन किए जाने की योजना है।

प्रकाश जैन स्वयं भी एक संवेदनशील कवि थे और उन्होंने अपनी ऊर्जा का अधिकांश भाग ‘लहर’ पत्रिका के संपादन और प्रकाशन में लगाया। उनका शताब्दी वर्ष न केवल एक स्मरण है, बल्कि यह अवसर भी है कि हम साहित्यिक पत्रकारिता की चुनौतियों को समझें, छोटे पत्र-पत्रिकाओं के महत्व को पहचानें और उस पीढ़ी की स्मृति को ताज़ा करें जिसने हिंदी साहित्य को नई ऊँचाइयाँ दीं।

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