Font by Mehr Nastaliq Web
noImage

विंस्टन चर्चिल

1874 - 1965

विंस्टन चर्चिल के उद्धरण

जब मैं विदेश में रहता हूँ, तो मेरा यह नियम है कि अपने देश की सरकार की आलोचना या उस पर प्रहार नहीं करता। जब मैं स्वदेश वापस आता हूँ तो खोए समय की कमी पूरी कर लेता हूँ।

हर मनुष्य को विदेशी नामों का उच्चारण इच्छानुसार करने का अधिकार है।

तानाशाह बाघों पर सवार होकर इधर-उधर घूम रहे हैं। उनसे उतरने का साहस उनमें नहीं होता और बाघ भूखे होते जा रहे है।

यह अंत नहीं है। यह अंत का प्रारंभ भी नहीं है। लेकिन शायद यह प्रारंभ का अंत है।

दर्पयुक्त तानाशाह अपने दल के यंत्र के चंगुल में जकड़ा हुआ होता है। वह आगे जा सकता है, परंतु वापस नहीं जा सकता।.. वह बाहर से पूर्ण शक्तिशाली होता हुआ भी अंदर से पूर्ण दुर्बल होता है।

Recitation